हेलो दोस्तो, कैसे हैं आप सब मेरा नाम हर्ष हैं मैं बहुत ही हैंडसम हूँ आपको मेरा सेक्स का अनुभव बताने आया हूँ बात उस समय की हैं जब मैं बीएससी फर्स्ट ईयर मैं पढ़ रहा था मेरे एग्जाम चल रहे थे खाना खाकर रात को मैं अपने कमरे में तैयारी कर रहा था।
उस समय मेरे दोस्त संजय का फ़ोन आया की, हर्ष मैं भी एग्जाम की तैयारी करने तेरे घर आ रहा हूँ। मैंने कहा ठीक हैं, वह तैयार होकर रात आठ बजे मेरे घर पर आ गया।
मेरे घर पर मेरा कमरा घर से बाहर एक ओर था और वहाँ न तो घर वाले आते थे और न ही कोई आवाज़ आती थी। मैं पहले ही खाना खा कर बनियान-पजामा पहन कर पढ़ रहा था। मैंने देखा कि वो भी पजामा और कुर्ता पहने था।
उसने आते ही अपना कुर्ता उतार कर खूँटी पर टांग दिया और बनियान-पजामे में मेरे सामने मेज़ की दूसरी ओर कुर्सी पर बैठ गया और हम दोनों एक साथ एक एक पाठ दोहराने लगे। दो दिन बाद हमारा साइंस का पेपर था।
रात करीब एक बजे जब स्त्री पुरुष के जनन-अंगों वाला चैप्टर आया और उसमें जनन अंगों की फोटो वाला पेज आया तो कुछ रात की खुमारी और कुछ सेक्स अंगों की फोटो देख कर हम दोनों उत्तेजित होने लगे, हालांकि हम दोनों ही उस पाठ को पहले भी कई बार पढ़ चुके थे।
अचानक संजय बोला कि मुझे पेशाब जाना हैं और वह उठने लगा तो मेरी नज़र अचानक उसके पजामे की तरफ गई तो देखा कि उसका लंड पूरा तना हुआ पजामे को तम्बू की तरह ताने हुए था। मुझे यह देख कर हंसी आ गई और वो शरमा कर बोला- धत, क्या देख रहा है? क्या तेरा भी ऐसे ही हो रहा है?
तो मैं भी उठा तो देखा कि मेरा भी वही हाल था और मैं भी शरमा गया। फिर वह पेशाब करने चला गया और उसके आने के बाद मैं भी पेशाब करने चला गया।
फिर वापस आने पर दोनों उसी चैप्टर को याद करने लगे लेकिन अब हम दोनों का ही मन नहीं लग रहा था और दोनों ही का दिमाग कहीं और भटक रहा था।
दस मिनट के बाद संजय बोला- अब पढ़ने में मन नहीं लग रहा है क्योंकि मेरा लंड फिर से कड़ा होने लगा है, लगता है यह पाठ पूरा नहीं कर पाऊँगा। यार तू बता मैं क्या करूँ? मैंने कहा- यार मेरा भी यही हाल है और कुर्सी से उठ कर उसे दिखाया।
संजय ने कुछ सोचा और उठ कर बोला- यार चल एक दूसरे को नंगा करके लंड मिलाते हैं किसका कैसा है!
यह कहते हुए उसने अपना कुरता और पजामा दोनों उतार कर चड्डी को भी उतार दिया और ऊपर से नीचे तक पूरा नंगा हो गया। उसका लंड काले रंग का सीधा ऊपर को तना था और करीब 7 इंच लम्बा और थोड़ा मोटा आगे से नुकीला लेकिन खाल से ढका हुआ था।
यह देख कर मैंने भी अपने सारे कपड़े उतार दिए। मेरा लंड भी लगभग उसी के बराबर लेकिन गोरा था क्योंकि मेरे शरीर का रंग गोरा और उसका सांवला था। मेरा लंड भी खड़ा था। यह देख कर हम दोनों पता नहीं कैसे अपने आप एक दूसरे से चिपक गए जिससे दोनों के लंड आपस में टकराने लगे और हम दोनों को जाने कैसी मजेदार अनुभूति होने लगी।
दो मिनट के बाद हम दोनों एक दूसरे का लंड हाथों में पकड़ कर सहलाने लगे।हम लोगों को बहुत मजा आ रहा था। दोनों ने दो सेक्सी कहानियाँ पढ़ी थी ऐसा करते हुए हम दोनों बिस्तर पर पहले बैठ गए फिर अपने आप ही लेट गए अगल बगल और जोरों से एक दूसरे को चाटने लगे और लंड से लंड को धक्के देकर टकराने लगे।
बड़ा ही मजा आ रहा था। मैं बोला- ठीक है! और यह सुनकर संजय ने पूछा- क्या तेल है?
मेरे पास तेल नहीं था लेकिन चेहरे पर क्रीम लगाने का शौक होने के कारण क्रीम की शीशी थी। वो मैंने अलमारी में से निकाल कर उसको दे दी। संजय ने कहा- यार किसी से कहना नहीं! नहीं तो बहुत हँसी बनेगी!
तो मैंने कहा- हम दोनों में कोई नहीं बताएगा! बस अब देर मत करो और कहानी का प्रैक्टिकल शुरू करते हैं। अब यह बता पहले तू कोशिश करेगा या मैं करूँ?
तो संजय ने कहा- यार तू ही कर!
मैंने उसे बिस्तर पर पेट के बल लिटाया और उसकी जांघों के बीच उसके पैर फैला कर इस तरह बैठ गया कि मेरे लंड के सुपाड़े और उसकी गांड के छेद दोनों लगभग एक सीध में आ गये।
फिर मैंने शीशी में से क्रीम निकाल कर उंगली से अपने लंड के सुपाड़े और पीछे भी लगाई और थोड़ी क्रीम उंगली से उसकी गांड के छेद के ऊपर लगा दी।
फिर थोड़ा आगे बढ़ कर अपना सुपाड़ा उसकी गांड के छेद पर रख कर जोर लगाया कि लंड अंदर घुसे। लेकिन वो तो जरा भी अंदर नहीं गया तो संजय बोला- चूतिया! खूब जोर से धक्का पेल! तभी तो अंदर जायेगा!
मैं अपने हाथों से दोनों चूतड़ पकड़ कर फैला रहा हूँ, तू जोर से ताकत लगा कर घुसेड़ दे!
मैंने आव देखा न ताव! और पूरी ताकत से धक्का मारा तो एक चीख तो संजय के मुँह से निकली- हाई दय्या रे मर गया! निकाल जल्दी से निकाल! साले मैं मर जाऊँगा!
और वह मेरा लंड अपनी गांड में से बाहर निकलने को छटपटाने लगा। मेरा आधे से ज्यादा लंड उसकी गांड में घुस चुका था। दूसरी चीख हलकी सी मेरे मुँह से निकली क्योंकि पहली बार मेरे लंड से खाल पूरी तरह हट कर बिल्कुल पीछे हो गई थी और लंड संजय की गांड की दोनों फांकों के बीच बहुत टाइट फंसा था।
संजय के छटपटाने से मेरा संतुलन भी बिगड़ गया था जिससे मैं उसकी पीठ पर गिर गया था और संजय मेरे वजन के कारण हिल भी नहीं पा रहा था। मैं थोड़ी देर उसी प्रकार लेटा रहा और सोच रहा था कि क्या करूँ, अपना लंड बाहर निकालूँ या दूसरा धक्का मारकर पूरा अंदर कर दूँ!
इस प्रकार चार-पाँच मिनट बीत गए तो संजय का छटपटाना बंद हो गया और वो शांति से लेटा था। फिर संजय खुद बोला- यार जब प्रैक्टिकल करना है तो पूरा ही कर लेते हैं! जो होगा देखा जायेगा! तू लंड पूरा घुसेड़ दे लेकिन अबकी बार एक धक्के में पूरा घुस जाये क्योंकि तीसरा धक्का खाने की ताकत नहीं है मेरे में!
मैंने शरीर की पूरी ताकत अपने कूल्हों में इकठ्ठा करके जो धक्का मारा तो एक ओर तो मेरा पूरा लंड उसकी गांड में जड़ तक बैठ गया और दूसरी ओर संजय तो चीख कर रोने लगा- यार, मैं तो मर गया! मेरी गांड भी फट गई होगी। अब मैं कल कैसे स्कूल जाऊँगा?
उधर मेरे लंड में भी बहुत दर्द हो रहा था लेकिन अब तो जो होना था वो हो चुका था और मैं उसके ऊपर लेटा था चुपचाप!
थोड़ी देर बाद जब दोनों को शांति हुई तो मैं कहानी में पढ़े अनुसार धीरे धीरे धक्के लगाने लगा तो हम दोनों को तीन चार मिनट के बाद मजा आने लगा। मेरे धक्कों की स्पीड धीरे धीरे अपने आप बढ़ती चली गई और संजय भी नीचे से अपने चूतडों को ऊपर उठा उठा कर मेरे धक्कों को बढ़ाने लगा और उसके मुँह से अपने आप निकलने लगा यार मेरी जान चोद दे, फाड़ दे मेरी गांड, बड़ा मजा आ रहा है आज तक इतना मजा कभी नहीं आया
और मैं भी पूरी स्पीड से धक्के लगाता हुआ बोल रहा था- ले मेरी जान, पूरा लंड पी लिया अब और लम्बा कैसे करूँ?
इस प्रकार बातें करते स्पीड बढ़ती गई और अचानक मेरे लंड से गरम गरम लावा सा निकलने लगा और मुझे लगा कि मैं किसी तरह संजय की गांड में खुद घुस जाऊँ।
फिर मैं पस्त हो कर संजय की पीठ पर लेट गया और संजय भी पस्त हो गया था। मेरा लंड भी अपने आप सिकुड़ कर छोटा होकर संजय की गांड से फिसल कर बाहर आ गया और उसकी गांड के बाहर गीला गीला सा मेरे लंड से टपकने लगा था।
थोड़ी देर बाद मैं उसके ऊपर से उठा तो देखा कि उसकी गांड में से सफ़ेद तरल निकल रहा था। लेकिन आनन्द जो आज पहली बार गांड मारने में आया उसे मैं कभी भूल नहीं सकता था और सोच लिया कि अब रोज़ संजय की या जो मिल जाये उसकी मारूंगा ज़रूर!
मैंने झाड़-पौंछ करने वाला कपड़ा लिया और संजय की गांड को धीरे धीरे साफ किया। अब संजय धीरे से उठा तो उसे दर्द हो रहा था, लेकिन वो बहुत खुश था कि गांड मरवाने में इतना मजा आता है तो अब अलग अलग आकार के लंड खोज खोज कर गांड मरवाऊँगा।
दोस्तो, उसके बाद थोड़ी देर हम लोग सेक्स की ही बात करते रहे और मैं संजय का लंड सहलाता रहा जिससे वो पूरी तरह से खड़ा हो गया तो मैंने खुद संजय से कहा- यार, गांड मारने में बहुत मजा आया और मैं अब रोज़ नई नई गांड मारूँगा! अब तुम मेरी गांड मारो जिससे मुझे उसका भी स्वाद मिल जाये।
यह कह कर मैं पेट के बल बिस्तर पर लेट गया और… दोस्तो बार बार वैसी ही कहानी दोहराने से क्या फायदा!
जिस तरह मैंने उसकी गांड मारी और फाड़ी और जितना दर्द मुझे अपने लंड में अनुभव हुआ उतना ही संजय को भी हुआ और मेरी भी गांड फट गई और बहुत दर्द हुआ।
लेकिन दोस्तो, बहुत मजा आया और सोच लिया कि गांड मारना और मरवाना दोनों में बहुत मजा आता है और यदि लंड और गांड बदलती रहे तो कहना ही क्या!
पहले तो हम लोग आपस में ही यह खेल खेलते रहे लेकिन फिर हम लोगों ने अपना दायरा बढ़ाया और बहुत से लोगों को शामिल करके तब तक मजा लेते रहे।