दोस्तो, मेरा नाम महेश है, मेरी उम्र इस वक्त 48 साल की है। मैं मेरी पत्नी और मेरा बेटा … बस यही मेरा परिवार है।
अभी कुछ समय पहले मेरी पत्नी की एक सहेली बनी। वो औरत हमारे मोहल्ले की दूसरी गली में रहती है।
दोस्ती की वजह यह हुई कि मेरी पत्नी और उस औरत, दोनों का नाम शोभा है। उस औरत शोभा के दो बेटियाँ है, बड़ी बेटी नव्या 16 साल की है, और छोटी बेटी काव्या 13 साल की है।
छोटी लड़की तो पतली दुबली सी, साँवली सी है। बड़ी लड़की नव्या भी पतली है मगर वो गोरी है, देखने में भी सुंदर है और अभी कॉलेज की पढाई पूरी कर रही है।
शोभा का पति पहले तो यहीं रहता था और दोनों मियां बीवी छोटे मोटे काम करके अपना गुज़ारा करते थे तो घर के हालात कुछ खास अच्छे नहीं थे। फिर शोभा के पति को विदेश से बाहर जाने का मौक़ा मिला तो वो काम करने विदेश चला गया।
वैसे तो हमारा एक दूसरे के घर आना जाना हो जाता था। मगर जब शोभा का पति विदेश चला गया तो मुझे शोभा कुछ विशेष लगने लगी। हालांकि रंग रूप में, या शारीरिक बनावट में वो मेरी पत्नी के मुक़ाबले कहीं भी नहीं ठहरती थी
मगर पराई औरत तो पराई औरत ही होती है। अच्छी न भी हो, तो भी बस उसके मम्मे, उसकी गाँड, आपको अपनी ओर आकर्षित करती ही करती है।
मेरे मन में भी कई बार इस बात का ख्याल आया कि शोभा को थोड़ा टटोल के देखूँ, पति इसका पास में नहीं, तो रात को ये भी तो बिस्तर पर करवटें बदलती होगी अगर किसी तरह से बात बन गई, तो अपने को बाहर मुँह मारने का मौका मिल जाएगा।
हालांकि मैं उसके घर कम जाता था, मैं तो अपने काम धंधे में ही बिज़ी रहता था मगर कभी कभार आना जाना हो जाता था या कभी कभी वो भी आ जाती थी।
अब मेरी बीवी के साथ उसका अच्छा दोस्तना था, वो मेरी बीवी को दीदी और मुझे जीजाजी कहती थी। मगर मैंने कभी उसके साथ साली कह कर कोई हंसी मज़ाक नहीं किया, मैं थोड़ा रिज़र्व ही रहता था. हाँ उसकी बेटियों के साथ मैं हंस बोल लेता था।
पति के विदेश जाने के बाद उसने घर के कई कामों में कई बार मेरी मदद भी ली मगर मैंने खुद आगे बढ़ कर कभी कुछ नहीं किया सारा काम, बातचीत मेरी पत्नी के द्वारा ही होती थी।
मगर एक बात जो मैं नोटिस कर रहा था कि शोभा का व्यवहार अब बदलने लगा था। जब भी मौका मिलता उसे, वो मुझे जीजाजी कह कर खूब हंसी मज़ाक कर लेती।
मुझे अक्सर लगता कि वो अपनी आँखों से अपनी बातों से अपने हाव भाव से यह जता रही थी कि जीजाजी हिम्मत करो और मुझे पकड़ लो, मैं आपको ना नहीं करूंगी। मगर मैं अपनी पत्नी के सामने होते उसे कैसे पकड़ सकता था।
समझती वो भी थी कि जब तक हम अकेले नहीं मिलते तब तक कोई भी सम्बन्ध हमारे बीच नहीं बन सकता था। मगर अकेले मिलने का कोई भी मौका हमें नहीं मिल रहा था।
हमारी दोस्ती या यूं कहो कि दिल में छुपा हुआ प्यार इसी तरह चल रहा था। अपने अपने मन में हम दोनों तड़प रहे थे। मैं कम तड़प रहा था, वो ज़्यादा तड़प रही थी।
वो कई बार कह भी चुकी थी- जीजाजी, आपके पास कार है, मुझे कार चलानी सिखाइए। जीजाजी, किसी दिन अपन दोनों कोई फिल्म देखने चलते हैं।
मेरी तो इच्छा है कि बरसात हो रही हो, और हम दोनों जीजा साली कहीं दूर तक गाड़ी में घूम कर आयें।
ये सब बातें वो बातों बातों में मेरी पत्नी के सामने कह चुकी थी और ऐसी ही बातों से मेरे दिल में ये विचार आए कि शायद ये मुझसे अकेले मिलने का बहाना ढूंढ रही है।
एक दिन हम बाज़ार गए थे, वहीं वो भी मिल गई, अपनी दोनों बेटियों के साथ। तो हमने उन्हें शाम के खाने का न्योता दिया। वो झट से मान गई
हम एक मिठाई की दुकान में गए, ऊपर उनका ही रेस्टोरेन्ट बना था। सब कुछ शाकाहारी था। हमने वहाँ बैठ कर खाना खाया।
अब उसकी बड़ी बेटी मेरे साथ बैठी जबकि शोभा उसकी छोटी बेटी, और मेरी पत्नी मेरे सामने बैठी। नव्या वैसे भी मेरे से बहुत स्नेह करती थी।
हम दोनों चुपचाप बैठे खाना खा रहे थे, वो शोभा बोली- देखो दोनों कैसे बिल्कुल एक ही स्टाइल से खाना खा रहे हैं, जैसे नव्या आपकी ही बेटी हो। मैंने कहा- हाँ, मेरी बेटी है। अब मैं और क्या कहता। मगर तभी शोभा बोली- आपकी कैसे हो सकती है, हम कभी मिले तो है नहीं?
मैं तो सन्न रह गया। मिले नहीं मतलब सेक्स नहीं किया। मैंने सोचा- अरे भाई ये तो चुदवाने के चक्कर में है, और मैं यूं ही शराफत में मारा जा रहा हूँ।
मगर उस वक्त मैंने सिर्फ हाथ उठा कर आशीर्वाद देने का ढोंग कर दिया कि नव्या तो मेरी आशीर्वाद से पैदा हुई बेटी है।
तो नव्या बोली- मौसा जी, अगर आप बुरा न माने तो मैं आपको पापा कह लिया करूँ।
अब उस बेटी की यह नन्ही सी प्यारी सी गुजारिश को मैं ना नहीं कर सका।
मैंने कहा- हाँ, बेटा, मुझे तो खुशी होगी, मेरी कोई बेटी नहीं, तुम मेरी बेटी बन जाओ।
उस दिन के बाद नव्या मुझे हमेशा पापा ही कहती। मगर छोटी बेटी कभी पापा तो कभी मौसा जी कह देती थी। उसके साथ मेरा रिश्ता ठीक ठाक सा ही था क्योंकि वो चुप ज़्यादा रहती थी।
फिर एक दिन नव्या ने मुझसे मेरा फोन नंबर मांगा, उसके बाद वो मुझे कभी कभी फोन भी करती, सुबह शाम को कभी कभी मेसेज भी करती और मैं भी उसे अच्छे अच्छे मेसेज भेज दिया करता था जैसा कोई भी बाप बेटी करते हैं।
एक दिन मैं और मेरी पत्नी उनके घर गए, तो उस दिन रविवार था और वो सब लोग बाल धोकर बैठे थे।
फिर नव्या तेल ले कर आई और तीनों माँ बेटी एक दूसरी के सर में तेल लगाने लगी।
मैंने भी बैठे ने यूं ही कह दिया- अरे वाह,नव्या, बहुत बढ़िया से तेल लगाती हो तुम तो!
वो बोली- पापा, आपके भी लगा दूँ? मैंने कहा- हाँ, लगा दो।
अब नव्या तेल की शीशी लेकर मेरे पास आई। मैं उनके दीवान पर बैठा था, वो मेरे पीछे आई और कटोरी से तेल लेकर मेरे बालों में लगाने लगी।
आहह … हह … आहा …” कितना आनंद आया, जब बेटी पिता के सर में तेल लगाये अपने नर्म नर्म हाथों से।
शोभा बोली- अरे जीजाजी, मैं लगा दूँ आपके तेल? उसकी बात मैं समझ गया मगर मैंने कहा- अजी नहीं शुक्रिया, बिटिया बहुत बढ़िया लगा रही है।
उसके बाद उनके घर ही हमने खाना खाया और जब वापिस आए, तो अपनापन दिखाने के लिएशोभा ने पहले मुझे नमस्ते बोली और फिर आगे बढ़ कर मुझे आलिंगन भी किया।
मगर उसने आलिंगन करते हुये अपना मम्मा मेरी बगल से अच्छे से रगड़ दिया और मेरी तरफ देख कर शरारत से मुस्कुराई।
वो मुझे साफ से साफ इशारे कर रही थी कि आओ मुझे पकड़ो मगर मैं ही ढीला चल रहा था। मैंने सोचा कि अब अगर एक भी मौका और मिला, तो मैं शोभा से बात कर लूँगा।
फिर एक दिन मौका मिला, वो हमारे घर ही आई हुई थी, मेरी बीवी रसोई में थी। मैंने पूछा- अरे शोभा, तुमने मेरा मोबाइल नंबर लिया था, पर कभी फोन तो किया नहीं?
वो बोली- आप तो वैसे ही कम बात करते हो, क्या पता फोन पर बात करो भी या नहीं।
मैंने कहा- अरे नहीं, मैं तो बल्कि इंतज़ार कर रहा था कि कभी हैलो हाई, नमस्ते, गुड मॉर्निंग, आई लव यू, कुछ तो मेसेज करो। वो मेरी बात सुन कर बहुत हंसी, बोली- अच्छा अब करूंगी।
और अगले ही दिन सुबह उसका मेसेज आया ‘गुड मॉर्निंग’ का। जवाब में मैंने भी उसको गुड मॉर्निंग का मेसेज भेजा। और दिन में ही हम दोनों ने 20 करीब मेसेज एक दूसरे को कर दिये।
जितना मैं खुल कर चला, वो उससे भी ज़्यादा खुल कर चली और अपने जीजा साली के रिश्ते की सारी मान मर्यादा तोड़ कर हम दोनों ने एक दूसरे को खुल्लम खुल्ला प्यार का इज़हार तक कर दिया। यहाँ तक के उसने ये भी कह दिया कि अगर आप न कहते तो मैं खुद ही कहने वाली थी।
अब जब प्यार का इज़हार ही हो गया, तो और क्या बाकी रहा। वो पूरी तरह से मेरे साथ सेट हो चुकी थी। मन में खुशी के लड्डू फूट रहे थे कि यार कमाल हैं 48 साल की उम्र में भी माशूक पटा ली।
उसके बाद तो अक्सर हम फोन पर बाते करते, दो तीन दिन में ही, बातें शीशे की तरह साफ हो गई। दोनों ने एक दूसरे से कह दिया कि अब जिस दिन भी मिलेंगे, अकेले में मिलेंगे, और उसी दिन हम सभी हदें पार कर जाएंगे।
मैंने सोचा, अब माशूक के पास जाना है, तो पूरी तैयारी के साथ जाया जाए। शुक्रवार की मैंने अपने काम से पहले ही एक दिन की छुट्टी ले ली थी।
हमारा 11 बजे मिलने का प्रोग्राम था। मगर मैं 10 बजे से पहले ही हर तरह से तैयार था। करीब पौने 11 बजे मैंने शोभा को फोन करके पूछा- हां जी क्या हाल हैं साली साहिबा? वो बोली- बहुत बढ़िया, आप सुनाओ।
मैंने पूछा- मैं तो सोच रहा था, सुबह सुबह आपके दर्शन हो जाते तो, सारा दिन बढ़िया गुज़रता। वो उधर से बोली- तो आ जाइए, किसने रोका है, आपका ही घर तो है।
मैं तो उड़ता हुआ उसके घर पहुंचा। गेट खोल कर अंदर गया, अंदर घर में वो रसोई में कुछ कर रही थी। मैंने आस पास देखा, घर में और किसी के होने की आहट नहीं थी। मगर फिर भी मैं रसोई में गया, उस से नमस्ते की, उसका, बच्चों का हाल चाल पूछा।
फिर पूछा- बच्चे कहाँ हैं। वो बोली- बड़ी कॉलेज, छोटी स्कूल। बस घर में मैं अकेली हूँ। मतलब जो मैं पूछना चाहता था, वो उसने खुद बता दिया।
वो गैस पर चाय बना रही थी, मैं उसके पीछे जा कर खड़ा हो गया। दिल तो कर रहा था कि इसे पीछे से ही बांहों में भर लूँ, मगर फिर भी दिल में एक डर सा था। मगर फिर भी मैंने हिम्मत करके उसको अपनी बांहों में भर लिया।
वो एकदम से चौंकी- अरे जीजाजी, ये क्या कर रहे हो? वो गुस्सा नहीं हुई तो मेरी भी हिम्मत और बढ़ गई, मैंने झट से उसकी गर्दन पर एक दो चुंबन रख दिये और उसे कस कर अपने से चिपका कर बोला- उम्म्ह … अहह … हय … ओह … मेरी शोभा अब सब्र नहीं होता यार!
और मैंने उसकी गर्दन कंधो को चूमते हुये, उसका चेहरा घुमाया, और उसके गाल पर भी चूम लिया वो मुस्कुरा कर बोली- आप तो बड़े बेशर्म हो, छोटी साली तो बेटी जैसी होती है।
मेरी शोभा के साथ सेक्स की कहानी आगे भी अगले भाग में जारी रहेगी……. पढ़ते रहिये।