देवरानी और जेठानी की मस्ती

हाय फ्रेंड्स, मेरा नाम ऋतू है, मैं शादीशुदा हूँ, मेरी उम्र 30 साल है, मैं बहुत सुन्दर हूँ, एकदम दूध सी गोरी, बिल्कुल चिट्टी, मेरी फिगर 32-28-34 है।

जब मैं शादी करके अपनी ससुराल आई तो मैं और मेरे पति कुछ समय ससुराल गाँव में रहने के बाद अपने जेठ-जेठानी के मकान में साथ रहने के लिए कानपुर आ गये, मेरे पति की सर्विस कानपुर में ही थी, वो कई बार ऑफ़िस के काम से टूअर पर भी जाते रहते थे।

मेरी जेठानी मेरा बहुत ख्याल रखती थी, वो एक स्कूल में टीचर थी, वो मुझे पहनने के लिए सुन्दर और बढ़िया साड़ियाँ देती थी, वो कहती थी- तू हमारे खानदान की सबसे सुन्दर बहू है।

वैसे यह सच है कि मैं अपने पति के सारे भाइयों की पत्नियों में सबसे सुन्दर हूँ, मेरी जेठानी मुझे ज़्यादा घर का काम भी नहीं करने देती थी, उनके दो बच्चे थे, वो कहती थी तू मेरी देवरानी नहीं, मेरी छोटी बहन है।

मेरे जेठ भी मेरा बहुत ख्याल रखते थे, वो मेरे लिए रोज कुछ ना कुछ बाजार से खाने के लिए लाते थे।

कुल मिलकर दोनों मेरा बहुत ख्याल रखते थे।

गर्मियों के दिन थे, मैं घर का सारा काम निपटा कर दोपहर में आराम कर रही थी, जेठानी स्कूल गई हुई थी, उनके बच्चे दूसरे कमरे में सो रहे थे।

जेठानी स्कूल से आई और बोली- ऋतू, तू क्या कर रही है?

मैं बोली- कुछ नहीं, बस लेट गई थी।

वो मेरे पास कमरे में आ गई, दरवाजा बंद कर दिया और मेरे पास पलंग पर आकर लेट गई।

वो बोली- आज तो थक गई मैं, मैं भी तेरे साथ लेट कर थोड़ा आराम कर लेती हूँ।

मैं बोली- हाँ जीजी, आ जाओ, आप भी आराम कर लो।

वो मेरी बगल में लेट गई, उन्होंने अपना हाथ मेरे ऊपर रख लिया, थोड़ी देर बाद वो मेरे चूचों पर अपनी उंगलियाँ फ़िराने लगी।

मैं सोचने लगी की अरे ये जीजी क्या कर रही है, पर मैं कुछ बोली नहीं।

फिर वो मेरे चेहरे पर अपनी उंगलियाँ फ़िराने लगी और…..और….फिर चुचों कों अपने हाथों से दबाते हुए मुझसे लिपट गई।

मुझे अच्छा लग रहा था, मैं उनकी तरफ मुँह करके लेट गई, उन्होंने मेरे होंठों पर एक पप्पी की और मेरे गालों पर भी एक पप्पी की और बोली- नींद नहीं आ रही ऋतू?

मैं बोली- नहीं।

फिर वो मेरे होंठों, और गोरे गालों पर प्यार करने लगी और मेरे चूचों को दबाने लगी।

उन्होंने अपनी सीधी वाली टाँग को मेरी टाँगों के ऊपर रख लिया और मेरे उल्टे हाथ को अपने स्तन पर रख दिया।

मैं उनके चूचों को दबाने लगी, उनके चूचे बड़े मोटे- मोटे थे, वो भी मोटी थी उनका फिगर 38-40-40 तो होगा ही।

मैं भी उनके होंठों और गालों पर प्यार करने लगी, और… और.. सच कहूँ तो उनके गालों को चूसने लगी।

तभी वो बोली- बड़ी गर्मी है आज तो !

मैं बोली- हाँ !

और वो खड़ी होकर अपनी साड़ी उतारने लगी, वो बोली- ऋतू, तू भी अपनी साड़ी उतार दे, गर्मी हो रही है।

मैंने भी अपनी साड़ी उतार दी।

अब हम दोनों जेठानी-देवरानी सिर्फ़ ब्लाऊज और पेटीकोट में थी। फिर वो मेरे पास आ कर लेट गई और हम दोनों एक दूसरे के चेहरे पर प्यार करने लगी, हम दोनों एक दूसरे के चुचों को भी दबा रही थी।

फ़िर उन्होंने अपने ब्लाऊज के हुक खोल दिए और ब्रा को ऊपर करके अपने मोटे-मोटे चुचों को बाहर निकाल लिया और मेरे भी ब्लाऊज के हुक खोल दिए और मेरी ब्रा को ऊपर करके मेरे छोटे-छोटे चूचों को बाहर निकाल दिया।

यह कहानी आप अन्तर्वासना.कॉम पर पढ़ रहे हैं।

उन्होंने मेरे पेटीकोट को ऊपर किया और मेरी जाँघों और मेरे कूल्हों पर अपने हाथ को फ़िराने लगी और…और मेरी चूत को भी अपनी उंगलियों से धीरे-धीरे सहलाने लगी।

मुझे मज़ा आने लगा।

फिर वो मुझसे बोली- ऋतू, मेरी चूत में उंगली कर ना !

मैंने उनका पेटीकोट ऊपर किया और उनकी चूत को अपनी उंगलियों से सहलाने लगी। उन्होंने मेरी चूत को सहलाते हुए उसमें अपनी एक उंगली डाल दी और उसे मेरी चूत में अन्दर–बाहर करने लगी।

उनकी मोटी-मोटी उंगलियाँ मेरी चूत में हलचल मचा रही थी, मेरी चूत गीली हो गई थी, मैंने उनके मोटे चुचूक को मुँह में भर कर चूसने लगी और अपनी उंगली को उनकी चूत में घुसेड़ अंदर-बाहर करने लगी।

जेठानी जी मस्त हो रही थी, उन्होंने मुझे अपने ऊपर खींच लिया। अब मैं उनके ऊपर और वो मेरे नीचे थी।

मैं उनके गालों और चुचों को अपने होंठों से चूसने लगी, वो मेरे चुचों को अपने हाथों से मसल रही थी, मैं अपनी चूत को उनकी चूत से मिलाने के कोशिश करते हुए अपनी कमर को हिलाने लगी।

मैं मस्त हो रही थी और मेरी जेठानी भी। हम दोनों की सिसकारियाँ कमरे में गूँज़ रही थी।

उन्होंने अपनी टाँगों को मोड़ लिया.. मैं अपनी चूत को उनकी चूत से मिलने की कोशिश करते हुए अपनी कमर को हिला रही थी।

हम दोनों की चूतें बड़ी गरम हो गई थी, उनमें से आग निकल रही थी, वो कभी मेरी कमर को पकड़ती, कभी मेरे चुचों को मसलती।

मैं अपनी कमर को हिलाते हुए अपने हाथों से उनके मोटे-मोटे चुचों को दबा रही थी और उनके भरे-भरे गालों को भी चूस रही थी।

अचानक मुझे बहुत मज़ा आने लगा- अर्रर… यह क्या मैं तो झरने लगी थी।

और फिर मेरा तो काम हो गया, मैं जेठानी से बोली- मेरा तो हो गया..

मैं जेठानी के ऊपर से हट कर बगल में लेट गई, उन्होंने मुझे अपने बदन से चिपका लिया और बोली- हो गया तेरा?

मैं बोली- हाँ !

वो बोली- ऋतू मेरी चूत में उंगली कर..

मैं उनकी चूत में उंगली करने लगी, उनकी चूत गीली हो रही थी, वो आह…आह… ससस्स… की आवाज़ें निकाल रही थी।

मैं ज़ोर-ज़ोर से अपनी दो उंगलियों को उनकी चूत में अंदर-बाहर कर रही थी, वो भी अपनी कमर को हिला रही थी।

फिर अचानक वो आह… आह… आह… करते हुए मुझसे चिपक गई और मुझे कस कर पकड़ लिया।

मैं बोली- जीजी हो गया क्या? वो बोली- हाँ !

फिर हम थोड़ी देर तक ऐसे ही लेटे रहे।

फिर वो खड़ी होते हुए बोली- ऋतू साड़ी पहन ले ! और वो भी साड़ी बाँधने लगी।

मैं शर्म के मारे उनसे नज़र नहीं मिला पा रही थी, उन्होने सारी बाँधने के बाद मेरे गाल पर एक पप्पी ली और बोली- अच्छा लगा?

मैं शर्मा गई, और उठ कर साड़ी बाँधने लगी।

अब हम दोनों को जब भी टाइम मिलता, हम दोनों जेठानी-देवरानी ऐसे ही सेक्स करने लगती।

यह थी हमारी देवरानी और जेठानी की मस्ती भरी कहानी।

 

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