हैलो दोस्तो, मेरा नाम सुधा है मेरी दीदी रेखा की शादी बुरहानपुर में अभी तीन महीने पहले हुई थी। मेरी बहन मुझसे दो साल बड़ी हैं। शादी के बाद पहली बार मेरे मदन जीजाजी दीदी को विदा कराने महीने भर पहले आए थे, उस समय वो केवल एक दिन ही रुके थे।
उस समय उनसे बहुत बातें तो नहीं हुईं लेकिन मेरी भोली-भाली दीदी अपने पति के बारे में वह सब बता गई, जो नई-नई ब्याहता नहीं बता पातीं।
उसने बताया कि वे बड़े सेक्सी हैं और कामकला में पारंगत हैं, उनका ‘वो’(लौड़ा) बड़ा मोटा है। पहली बार बहुत दर्द हुआ था।
उस समय दीदी की बातें सुनकर ना जाने क्यों जीजाजी के प्रति मेरी उत्सुकता बहुत बढ़ गई थी। मैं सोचती उनका लौड़ा न ज़ाने कितना बड़ा और लंबा होगा..!
बात-बात में मैंने बड़े अंतरंग क्षणों में जीजाजी की यह बात अपनी सहेली कामिनी को बता दिया।
उसको तो सेक्स के सिवा कुछ सूझता ही नहीं था। उस बुर-चोदी ने मेरे साथ लैस्बो चुदाई का खेल खेलते हुए मुझे जीजाजी से चुदवाने के सभी गुर सिखाना शुरू कर दिए।
वह खुद भी अपने जीजाजी से फँसी है और उनसे चुदवाने का कोई अवसर नहीं छोड़ती है, उसने अपने ट्यूशन के टीचर को भी पटा रखा है, जिससे वह अपनी खुजली मिटवाती रहती है।
उससे मेरे बहुत अच्छे सम्बन्ध हैं। वह बहुत ही मिलनसार और हँस-मुख लड़की है लेकिन सम्भोग उसकी कमजोरी है और उसको वह बुरा नहीं मानती है।
उसका मानना है कि ईश्वर ने स्त्री-पुरुष को इसीलिए अलग-अलग बनाया है कि वे आपस में चुदाई का खेल खेलें; सेक्स करने के लिए ही तो नर और मादा को अलग-अलग बनाया है।
उसका यह भी मानना है कि यह सब करते हुए कुंवारी कन्या को बहुत चालाक होना चाहिए, नहीं तो वह कभी भी फंस सकती है और बदनाम भी हो सकती है।
कल मेरी मम्मी ने बताया कि रेखा का फोन आया था कि मदन एक हफ्ते के लिए ऑफिस के काम से यहाँ शुक्रवार को आ रहे हैं। रेखा उनके साथ नहीं आ पाएगी, उसके यहाँ कुछ काम है।
उन्होंने हिदायत देते हुए कहा- तेरे पापा तो दौरे पर गए हुए हैं, अब तुझे ही उनका ख्याल रखना होगा। रेखा का ऊपर वाला कमरा ठीक कर देना, परसों से मैं भी जल्दी कथा सुन कर आ जाया करूँगी। वैसे वह दिन में तो ऑफिस में ही रहेगा, सुबह-शाम मैं देख लूंगी।
जीजाजी परसों आ रहे हैं यह जानकर मन अनजानी ख़ुशी से भर उठा, मेरा बदन बार-बार बेचैन हो रहा था और पहली बार उनसे कैसे चुदवाऊँगी इसका ख्वाब देखने लगी।
दीदी से तो मैं यह जान ही चुकी थी कि वे बड़े चुदक्कड़ हैं।
मैं आपको बता दूँ कि मेरे पापा जो इंजीनियर हैं, उन्होंने मेरा और दीदी का कमरा ऊपर बनवाया है। ग्राउंड-फ्लोर पर मम्मी-पापा का बड़ा बेडरूम, ड्राइंग-रूम, रसोई, स्टोर, गेस्ट-रूम, बरामदा, लॉन तथा पीछे छोटा सा बगीचा है।
ऊपर और कमरे हैं जो लगभग खाली ही रहते हैं क्योंकि मेरे बड़े भैया-भाभी अमेरिका में रहते हैं और बहुत कम ही दिनों के लिए ही यहाँ आ पाते हैं।
वे जब भी आते हैं, अपने साथ बहुत सी चीज़ें ले आते हैं। इसलिए कंप्यूटर, टीवी, डीवीडी प्लेयर, हैंडी-कैम इत्यादि सभी चीज़ें हैं।
मेरी भाभी भी बड़े खुले विचारों की हैं और अमेरिका जाते समय अपने अलमारी की चाभी देते हुए बता गईं थीं कि देखो, अलमारी में कुछ एडल्ट सीडी, डीवीडी और एल्बम रखे हैं, पर तुम उन्हें देखना नहीं.. और उन्होंने मुस्कराते हुए चाभी मुझे पकड़ा दी थी।
जीजाजी शुक्रवार को सुबह 8 बजे आ गए, जल्दी-जल्दी तैयार हुए नाश्ता किया और अपने ऑफिस चले गए।
दोपहर ढाई बजे वे ऑफिस से लौटे, खाना खाकर ऊपर दीदी के कमरे में जाकर सो गए।
उसके बाद मम्मी मुझसे बोलीं- बबुआ जी सो रहे हैं, मैं सोचती हूँ कि जाकर कथा सुन आऊँ… चमेली आती ही होगी, तुम उससे बर्तन धुलवा लेना।
बबुआ जी सो कर उठ जाएँ, तो चाय पिला देना और अल्मारी से नास्ता निकाल कर करवा देना।
मुझे ये सब निर्देश देकर वो कथा सुनने चली गईं।
मेरी बर्तन मांजने वाली चमेली मेरी हम-उम्र है और हमेशा हँसती-बोलती रहती है।
मम्मी के जाते ही मैं ऊपर गई, देखा जीजाजी अस्त-व्यस्त से सो रहे हैं, उनकी लुंगी से उनका लण्ड झाँक रहा था। शायद सपने में वे ज़रूर बुर का दीदार कर रहे होंगे, तभी तो उनका लौड़ा खड़ा था।
मेरे पूरे शरीर में झुरझुरी सी फ़ैल गई। मैं कमरे से निकल कर बारजे में आ गई। सामने पार्क में एक कुत्ता-कुतिया की बुर चाट रहा था। फिर थोड़ी देर बाद वह कुतिया के ऊपर चढ़ गया और अपना लौड़ा उसकी बुर में अन्दर-बाहर करने लगा।
ओह क्या चुदाई थी..!
उनकी चुदाई देख कर मेरी बुर पनिया गई और मैं अपनी बुर को सहलाने लगी।
थोड़ी देर बाद कुत्ता के लण्ड को कुतिया ने अपनी बुर में फँसा लिया। कुत्ता उससे छूटने का प्रयास करने लगा। इस प्रयास में वह उलट गया। वह छूटने का प्रयत्न कर रहा था, लेकिन कुतिया उसके लौड़े को छोड़ नहीं रही थी। यह सब देख कर मन बहुत खराब हो गया। फिर जीजाजी की तरफ ध्यान गया और मैं जीजाजी के कमरे में आ गई।
जीजाजी जाग चुके थे, मैंने पूछा- चाय ले आऊँ..!
“नहीं..! अभी नहीं… सर दर्द कर रहा है, थोड़ी देर बाद..लाना..!” फिर मुस्करा कर बोले- साली के रहते हुए चाय की क्या ज़रूरत?”
“हटिए भी..! लाइए आप का सर दबा दूँ.!” मैं उनका सर अपनी गोद में लेकर धीरे-धीरे दबाने लगी।
फिर उनके गाल को सहलाते हुए बोली- क्या साली चाय होती है कि उसको पी जाएँगे?
जीजाजी मेरी आँखों मे आँखें डाल कर बोले- गर्म हो तो पीने में क्या हर्ज है?
और उन्होंने मुझे थोड़ा झुका कर कपड़े के ऊपर से मेरे चूचियों को चूम लिया।
मैंने शरमा कर उनके सीने पर सिर छुपा लिया।
उस समय मैं शर्ट व स्कर्ट पहनी थी और अन्दर कुछ भी नहीं। उनके सीने पर सर रखते ही मेरे मम्मे उनके मुँह के पास आ गए और उन्होंने कोई चूक नहीं की, उन्होंने शर्ट के बटन खोल कर मेरी करारी चूचियों के चूचुकों को मुँह में ले लिया।
मेरी सहेलियों मैं आप को बता दूँ कि मेरी सहेली कामिनी ने कई बार मेरी चूचियों को मुँह में लेकर चूसा है, लेकिन जीजाजी से चुसवाने से मेरे शरीर में एक तूफान उठ खड़ा हुआ।
मैंने जीजा जी को चूची ठीक से चुसवाने के उद्देश्य से अपना बदन उठाया तो पाया कि जीजाजी का लण्ड लुंगी हटा कर खड़ा होकर हिल रहा था, जैसे वह मुझे बुला रहा हो ..कि आओ मुझे प्यार करो..!
ओह माँ..! कितना मोटा और कड़क लौड़ा था। मैंने उसे अपने हाथों में ले लिया।
मेरे हाथ लगाते ही वह मचल गया कि मुझे अपने होंठों में लेकर प्यार करो।
मैं क्या करती, उसकी तरफ बढ़ना पड़ा क्योंकि मेरी मुनिया भी जीजाजी का प्यार चाह रही थी। जैसे ही मैंने लौड़े तक पहुँचने के लिए गोद से जीजाजी का सर हटाया और ऊपर आई, जीजाजी ने स्कर्ट हटा कर मेरी बुर पर हाथ लगा दिया और चूम कर उसे जीभ से सहलाने लगे।
ओह.. जीजाजी का लौड़ा कितना प्यारा लग रहा था, उसके छोटे से होंठ पर चमक रही प्री-कम की बूँदें कितनी अच्छी लग रही थीं कि मैं बता नहीं सकती। लौड़ा इतना गर्म था कि जैसे वह लावा फेंकने ही वाला हो।
उसे ठण्डा करने के लिए मैंने उसे अपने मुँह में ले लिया। लौड़ा लंबा और मोटा था इसलिए हाथ में लेकर मैं पूरे सुपारे को चूसने लगी। जीजाजी बुर की चुसाई बड़े मन से कर रहे थे और मैं जीजाजी के लौड़े को ज़्यादा से ज़्यादा अपने मुँह में लेने की कोशिश कर रही थी, पर वह मेरे मुँह मे समा नहीं रहा था।
मैंने जीजाजी के लौड़े को मुँह से निकाल कर कहा- हाय जीजाजी..! यह तो बहुत ही लंबा और मोटा है..!
“तुम्हें उससे क्या करना है?” जीजाजी चूत से जीभ हटा कर बोले।
अब मैं अपने आपे में ना रह सकी, उठी और बोली- अभी बताती हूँ चोदू लाल, मुझे क्या करना है..!
मैं अब तक चुदवाने के लिए पागला चुकी थी। मैंने उनको पूरी तरह नंगा कर दिया और अपने सारे कपड़े उतार कर उनके ऊपर आ गई। बुर को उनके लौड़े के सीध में करके अपने यौवन-द्वार पर लगा कर नीचे धक्का लगा बैठी लेकिन चीख मेरे मुँह से निकली- ओह माँ..! मैं मरी…!”
जीजाजी ने झट मेरे चूतड़ दोनों हाथों से दबोच लिए, जिससे उनका आधा लण्ड मेरी बुर में फंसा रह गया और वे मेरी चूची को मुँह में डालकर चूसने लगे।
चूची चूसे जाने से मुझे कुछ राहत मिली और मेरी चूत चुदाई के लिए फिर से कुलबुलाने लगी एवं चूतड़ हरकत करने लगे।
तब तो चुदवाने के जोश में इतना सब कुछ कर गई लेकिन लेकिन अब आगे बढ़ने की हिम्मत नहीं हो रही थी लेकिन मुनिया चुदवाने के लिए लगातार मचल रही थी।
मैं जीजाजी के होंठ चूम कर बोली- जीजाजी ऊपर आ जाओ न..!
“क्या छोड़ोगी नहीं..?”
“नहीं छोडूँगी अपने चुदक्कड़ राजा को..!”
बिना बुर से लौड़ा निकाले वे बड़ी सफाई से पलटे और मैं नीचे और वे ऊपर और लण्ड मेरी बुर में…, जो अब थोड़ी नरम हो गई थी। उन्होंने मेरे होंठ अपने होंठ में ले लिए और बुर से लौड़ा निकाल कर एक जबरदस्त शॉट लगा दिया।
उनका पूरा लौड़ा सरसराते हुए मेरी बुर में घुस गया।
दर्द से मैं बेहाल हो गई..!
मेरी आवाज़ मेरे मुँह में ही घुट कर रह गई, क्योंकि मेरे होंठ तो जीजाजी के होंठ में फंसे थे।
होंठ चूसने के साथ वे मेरी चूचियों को प्यार से सहला रहे थे। फिर वे चूचियों को एक-एक करके चूसने लगे, जिससे मेरी बुर का दर्द कम होने लगा।
प्यार से उनके गाल को चूमते हुए मैं बोली- तुमने अपनी साली के बुर का कबाड़ा कर दिया ना..!
उनका पूरा लौड़ा सरसराते हुए मेरी बुर में घुस गया।
दर्द से मैं बेहाल हो गई..!
मेरी आवाज़ मेरे मुँह में ही घुट कर रह गई, क्योंकि मेरे होंठ तो जीजाजी के होंठ में फंसे थे।
होंठ चूसने के साथ वे मेरी चूचियों को प्यार से सहला रहे थे। फिर वे चूचियों को एक-एक करके चूसने लगे, जिससे मेरी बुर का दर्द कम होने लगा।
प्यार से उनके गाल को चूमते हुए मैं बोली- तुमने अपनी साली के बुर का कबाड़ा कर दिया ना..!
“क्या करता साली साहिबा अपनी बुर की झांट को साफ कर चुदवाने के लिए तैयार हुई जो बैठी थी..!”
“जीजाजी आप को ग़लतफहमी हो गई, मेरे बुर पर बाल है ही नहीं !”
“यह कैसे हो सकता है..! तुम्हारी दीदी के तो बहुत बाल है, मुझे ही उनको साफ करना पड़ता है..!”
“हाँ..! ऐसा ही है लेकिन वह सब बाद में पहले जो कर रहे हो उसे करो..!”
मेरे बुर का दर्द गायब हो चुका था और मैं चूतड़ हिला कर जीजाजी के मोटे लण्ड को एडजस्ट करने लगी थी, जो धीरे-धीरे अन्दर-बाहर हो रहा था।
जीजाजी ने रफ़्तार बढ़ाते हुए पूछा- क्या करूँ?”
मैं समझ गई जीजाजी कुछ गंदी बात सुनना चाह रहे हैं। मैं अपनी गांड को उछाल कर बोली- हाय रे साली-चोद..! इतना जालिम लौड़ा बुर की जड़ तक घुसा कर पूछ रहे हो कि क्या करूँ…! हाय रे कुंवारी बुर-चोद… अपने मोटे लौड़े से मथ कर मेरी मुनिया का सुधा-रस निकालना है, अब समझे… मेरे चुदक्कड़ राजा..!”
मैंने उनके होंठ चूम लिया। अब तो जीजाजी तूफान मेल की तरह चुदाई करने लगे। बुर से पूरा लण्ड निकालते और पूरी गहराई तक पेल देते थे।
मैं स्वर्ग की हवाओं में उड़ने लगी।
“हाय राज्ज्ज्जा…! और ज़ोर…सेईई … बड़ा मज्ज़ज़ज्ज्ज्ज्जा आ रहा है..और जोर्ररर सेई…… ओह माआ! हाईईईईई मेरी बुररर झड़ने वाली है……मेरी बुर्र्र्र्ररर के चिथड़े उड़ा दोऊऊऊऊ… हाईईईईई मैं गइईईई..!”
“रुक्कको मेरी चुदासी राआनी मैं भीईए आआआआअ रहा हूँ…!” जीजाजी ने दस-बारह धक्के लगा कर मेरी बुर को अपने गरम लावा से भर दिया। मेरी बुर उनके वीर्य के एक-एक कतरे को चूस कर तृप्त हो गई।
मेरे चूचियों के बीच सर रख कर मेरे ऊपर थोड़ी देर पड़े रह कर अपने सांसों को संयत करने के बाद मेरे बगल में आकर लेट गए और मेरी वीर्य से सनी बुर पर हाथ फेरते हुए बोले- हाँ..! अब बताओ अपने बिना बाल वाली बुर का राज..!
मैं इस राज को जल्दी बताने के मूड में नहीं थी, मैंने बात को टालते हुए कहा- अरे.. ! पहले सफाई तो करने दो, बुर चिपचिपा रही है इस साले लौड़े ने पूरा भीगा दिया है..!
मैं उठ कर बाथरूम में चली गई और बाथरूम में मेरे पीछे-पीछे जीजाजी भी आ गए। मैंने पहले जीजाजी के लौड़े को धोकर साफ किया, फिर अपनी बुर को साफ करने लगी।
जीजाजी गौर से देख रहे थे, शायद वे बुर पर बाल ना उगने का राज जानने के पहले यह यकीन कर लेना चाह रहे थे कि बाल उगे नहीं हैं कि इनको साफ किया गया है।
उन्होंने कहा- लाओ मैं ठीक से साफ कर दूँ..! वे बुर को धोते हुए अपनी तसल्ली करने के बाद उसे चूमते हुए बोले- वाकयी तुम्हारी बुर का कोई जवाब नहीं है।
और वे मेरी बुर को चूसने लगे। मैंने अपने पैरों को फैला दिया और उनका सर पकड़ कर बुर चुसवाने लगी, “ओह जीजाजी… क्य्आअ कार्रर्ररर रहीईई हैं… ओह …!”
तभी कॉल-बेल बजी।
मैं जीजा से अपने को छुड़ाते हुए बोली- बर्तन माँजने वाली चमेली होगी..!
और उल्टे-सीधे कपड़े पहन कर नीचे दरवाजा खोलने के लिए भागी, दरवाजा खोला तो देखा चमेली ही थी, मैंने राहत की सांस ली।
अन्दर आने के बाद चमेली मुझे ध्यान से देख कर बोली- क्या बात है दीदी..! कुछ घबराई कुछ शरमाई, या खुदा ये माजरा क्या है..! फिर बात बदल कर बोली- सुबह जीजाजी आए थे, कहाँ हैं..!
मैं बोली- ऊपर सो रहे हैं, मैं भी सो गई थी..!
“जीजाजी के साथ..!” हँसते हुए वो बोली
“तू भी ही सोएगी क्या..!” मैंने पलट वार किया। लेकिन वह भी मंजी हुई खिलाड़ी थी, बोली- हाय दीदी ! इतना बड़ा भाग्य मेरा कहाँ..!
उससे पार पाना मुश्किल था, बात बढ़ाने से कोई फ़ायदा भी नहीं था, क्योंकि वह मेरी हमराज़ थी, इसलिए मैं बोली- जा अपना काम कर, काम खत्म करके जीजाजी के लिए चाय बना देना, मैं देखती हूँ कि जीजाजी जागे कि नहीं।
नीचे का मैं दरवाजा बंद करके ऊपर आ गई। चमेली की तरफ से मैं निश्चिन्त थी वो बचपन से ही इस घर में आ रही है और सब कुछ जानती और समझती है।
उधर दीदी के कमरे में लुंगी पहन कर बैठे जीजाजी मेरा इंतजार कर रहे थे, जैसे ही मैं उनके पास गई मुझे दबोच लिया।
मैं उनसे छूटने की नाकाम कोशिश करते हुए बोली- चमेली बर्तन धो रही है, अब उसके जाने तक इंतजार करना पड़ेगा।
जीजाजी बोले- अरे.! उसे समय लगेगा तब तक एक क्या.. दो बाजी भी हो सकती हैं। वे मेरे मम्मों को खोलकर एक कबूतर की चौंच को अपने मुँह में लेकर चूसने लगे और उनका एक हाथ मेरी बुर तक पहुँच गया। बाथरूम में जीजाजी बुर चूस कर पहले ही गरमा चुके थे, अब मैं भी अपने को ना रोक सकी और लूँगी को हटा कर लौड़े को हाथ मे ले लिया।
मैं बोली- जीजाजी यह तो पहले से भी मोटा हो गया है…!
“हाँ जब यह अपनी प्यारी बुर को प्यार करेगा तो फूलकर कुप्पा न हो जाएगा..!”
“हाय..! मेरे चोदू सनम ! इस शैतान ने मेरी मुनिया को दीवाना बना दिया है… अब इसे उससे मिलवा दो…! मैंने उनके लौड़े को हाथ मारते हुए कहा।
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जीजाजी ने मेरे वे कपड़े उतार दिए जिससे मैं अपनी नग्नता छुपाए हुए थी और मुझे पलंग पर लिटा कर मेरे पैरों को फैला दिया। अब मेरी मदमस्त रसीली यौवन-गुहा उनके सामने थी। उन्होंने उसे फिर अपनी जीभ से छेड़ा।
कुछ देर तो उनकी दीवानगी का मज़ा लिया, लेकिन मैं परम-सुख के लिए बेचैन हो उठी और उन्हें अपने ऊपर खींच लिया और
बोली- राजा अब उन दोनों को मिलने दो..!
जीजाजी मेरे चूचुकों को मुँह से निकाल कर बोले- किसको..!”
मैंने उनके लौड़े को बुर के मुँह पर लगाते हुए बोली- इनको… बुर और लण्ड को…! समझे मेरे चुदक्कड़ सनम…! मेरी बुर के चोदन-हार… अब चोदो भी…!”
इस पर उन्होंने एक जबरदस्त शॉट लगाया और मेरी बुर को चीरता हुआ पूरा लण्ड अन्दर समा गया।
“हाईईईईईईई मारररर डाला ओह मेरे चोदू सनम … मेरी मुनिया तो प्यार करना चाहती पर इस मोटू को दर्द पहुँचाने में ज़्यादा मज़ा आता है…! अब रुके क्यों हो? कुछ पाने के लिए कुछ तो सहना पड़ेगा…ओह..माआआ … अब कुछ ठीक लग रहा है…… हाँ अब ठीककक हाईईईईई…ईईईईई फाड़ डालो इस लालची बुर को…!” मैं चुदाई के उन्माद में नीचे से चूतड़ उठा-उठा कर उनके लण्ड को बुर में ले रही थी।
और जीजाजी ऊपर से कस-कस कर शॉट पर शॉट लगाते हुए बोल रहे थे, “हाय चुदासी रानीईईई तुम्हारी बिना झांट वाली बुर ने तो मेरे लण्ड को पागल बना दिया है…! वह इस साली मुनिया का दीवाना हो गया है…! इसे चोद-चोद कर जब तक यहाँ हूँ जन्नत की सैर करूँगा… रानी बहुत मज़ा आ रहा है…!”
मैं चुदाई के नशे में जीजाजी को कस-कस कर धक्के लगाने के लिए प्रोत्साहित कर रही थी, “हाँ राजा…! चोद लो अपनी साली के बुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर को.. और जोर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर सेए फर्रर्र्र्र्ररर दो इस सालीइीईईईई बुर्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्र्ररर को ओह राज्ज्जज्ज्जाआअ मैं जन्नत क्ईईईई सैर कर रही हूऊओन…चोदो राजा चोद्द्द्दद्डूऊ और ज़ोर सीईईई…हाईईईईई कस कस कर मारो …ओह बस मैं आने वालिइीईईई हुन्न्ञणणन् उई माआअ मैं गइईईई……!”
मेरी बुर ने काम का सुधा-रस छोड़ दिया, पर जीजाजी धक्के पर धक्के लगाए जा रहे थे। वे झड़ने का नाम ही नहीं ले रहे थे।
मैंने कहा- जीजाजी ज़रा जल्दी..! चमेली चाय ले कर आती होगी..!
“मैं तो कब से चाय लेकर खड़ी हूँ.. चाय ठंडी हो गई और मैं गरम..!” यह चमेली की आवाज़ थी।
मैं चुदाई के तूफान में इस कदर खो गई थी कि चमेली की तरफ ध्यान ही नहीं गया। मैं जीजाजी को अपने ऊपर से हटाते हुए बोली- तू कब आई..!”
“जब आप अपने चोदू-सनम से चुदवा रही थीं और चुदक्कड़-रानी को जीजाजी चोद रहे थे..!”
“अच्छा..! ठीक है..! यह सब छोड़ जब तू यहाँ आकर मर ही गई तो बुर खुजलाना छोड़.. और इधर आ जीजाजी को सम्भाल..!”
मैं उठी और चमेली के सारे कपड़े उतार दिए और उसे जीजाजी के पास पलंग पर धकेल दिया। जीजाजी ने उसे दबोच लिया, उन्होंने अपना लण्ड उसके चूत में लगा कर धक्का दिया।
उसके मुँह से एक कराह सी निकली। मोटा लण्ड जाने से उसे मीठा दर्द हो रहा था। मैं धीरे-धीरे उसके उरोजों को मसलने लगी, जिससे उसकी उत्तेजना बढ़ती जाए और दर्द कम हो। धीरे-धीरे जीजाजी ने अपना पूरा लण्ड चमेली की बुर में घुसा दिया। अब उसकी तरफ से पूरा सहयोग मिल रहा था।
जीजाजी अब अपने लण्ड को चमेली की चूत में अन्दर-बाहर करने लगे और चमेली भी अपने कमर को उठा कर जीजाजी के लण्ड को अपने चूत में आराम से ले रही थी।
दोनों एक-दूसरे से गुंथे हुए थे।
चमेली बड़बड़ा रही थी, “दीदी..! जीजाजी मस्त चुदाई करते हैं… उई.. जीजाजी चोद दो… और ज़ोर से … और ज़ोर से… मुझे भी आने देना आज बहुत दिनों की प्यसस्स्स्स्सस्स बुझीईईईई गीईईई अब आ जाओ दीदी के चोदू-सनम …ओह माआअ मैं गइईई…!”
जीजाजी के अन्दर उबाल पहले से ही उठ रहा था, जो बाहर आने को बेचैन था। थोड़ी देर मे दोनों साथ-साथ खलास हो गए।
थोड़ी देर चमेली के शरीर पर पड़े रहने के बाद जब जीजाजी उठे।
तो मैं चमेली से बोली- गर्मी शांत हो गई..! जा अब चुदक्कड़ जीजाजी के लिए फिर से स्पेशल चाय बना कर ला.. क्योंकि जीजाजी ने तेरी स्पेशल चुदाई की है न..! “दीदी आप भी न …!”
वह अपने कपड़े उठाने लगी, तो मैंने च्यूँटी ली और बोली- जा ऐसे ही जा..!
“नहीं दीदी कपड़े दे दो, चाय लेकर जीजाजी के सामने नंगी आने में शरम लगेगी।”
मैं बोली- जा भाग..कर चाय लेकर आ, नंगी होकर चुदवाने में शरम नहीं आई..! अच्छा चल जा.. हम लोग भी यहाँ नंगे ही रहेंगे..!
शैतान चमेली यह कहते हुए नंगी ही भाग गई, “ये कहो कि नंगे रह कर चुदाई करते रहेंगे..!”
चमेली नीचे चाय बनाने चली गई जीजाजी मुझे चिढ़ाते हुए बोले- मालकिन की तरह नौकरानी भी जबरदस्त है..!
तो दोस्तों यह थी मेरी जीजा के साथ चुदाई की कहानी आपको कैसी लगी कमेंट करके बताना न भूले