देसी गाँव की चूत चोदी मैंने।
मैं ससुराल के गाँव में घूम रहा था कि मैंने अपने मुनीम को एक भाभी से कर्ज का तकादा करते देखा। मैंने मुनीम को भेज दिया और भाभी से कर्ज वसूल लिया।
दोस्तो, मैं विशु राजे।
आपने मेरी एक सेक्स कहानी
ठाकुर ने ससुराल में की मस्ती
में पढ़ा था कि कैसे ठाकुर ने यानि मैंने पूनम को कली से फूल बनाया।
अब आगे देसी गाँव की चूत चोदी:
पूनम की चूत फाड़ कर मैं हवेली लौटा।
तभी हवेली के पीछे वाली कोठरी में से कुछ आवाज सुनाई दी मुझे।
मैं उधर जाने लगा देखने कि क्या बात है।
उधर ही चम्पा की कोठरी भी थी।
उधर किसी की धोती कोने में हिलती हुई दिखाई दी।
मैंने वहां जाकर देखा, तो मुनीम गांव की उसी बुढ़िया की बहू को बांहों में लेने की जबरदस्ती कोशिश कर रहा था, जिसका कर्जा बाकी था।
पर वह उसे पीछे धकेल रही थी।
तभी मैं वहां पहुंच गया और मुनीम का गिरेबान पकड़ कर बोला- ये क्या हो रहा है?
मुनीम घबरा गया और बोला- कुछ नहीं मालिक… ये कर्जा नहीं दे रही थी। मैं इससे कर्जा वसूल कर रहा था।
मैं जोर से बरसते हुए बोला- तुम क्या वसूल रहे थे, वह हमने देखा। अब तुम्हारी नौकरी गयी, चले जाओ यहां से।
मुनीम रोने लगा, गिड़गिड़ाने लगा।
वह बोला- मालिक मुझे क्षमा कर दो, मैं आगे से ऐसी भूल नहीं करूंगा।
मैं और जोर से बरसा- चले जाओ यहां से, वरना मैं तुम्हारी जान ले लूँगा।
ये कहते हुए मैंने उसका गला दबोच लिया।
वह डर गया और वहां से निकल गया।
अब मैंने उस औरत से पूछा- तुम कौन हो?
वह बोली- जी, मैं जमुना हूँ।
मैं बोला- कितना कर्जा बाकी है तुम्हारा?
वह बोली- मालिक 2000 बाकी है।
मैं बोला- पति क्या करता है?
वह बोली- मालिक आपके पास ही खेत में काम करता है।
मैं बोला- तेरा पति महीने का क्या कमाता है?
वह बोली- मालिक 300 रुपया, उसमें से साहूकार का कर्जा है। आपका कर्जा है।
मैंने पूछा- साहूकार का कितना कर्जा है?
वह बोली- मालिक अभी 400 रुपए देना बाकी है।
मैं बोला- घर में कौन कौन है?
वह बोली- मालिक मैं, मेरी सास और मेरे पति।
मैं बोला- बाल बच्चा?
वह बोली- जी अभी नहीं हुआ।
मैं बोला- कितने साल हुए हैं शादी को?
वह बोली- जी 3 साल।
मैंने कहा- बच्चा क्यों नहीं हुआ?
वह चुप रही।
मैंने उसको गौर से देखा।
एकदम रसीला मगर गरीबी की धूल से थोड़ा सूखा हुआ आम लग रही थी।
मैं बोला- चल अन्दर आ जा।
वह मेरे पीछे चलने लगी।
मैं कोठरी में जाकर खटिया पर बैठ गया।
मैंने उससे कहा- दरवाजा बंद करके आ जा।
वह डरती हुई गयी और दरवाजा बंद कर दिया, फिर डरती हुई वहीं खड़ी हो गयी।
मैंने कहा- यहां आओ।
वह दो कदम आगे आयी।
मैं फिर बोला- और करीब आ!
तो वह डरती हुई और 4 कदम आगे आयी।
फिर मैं बोला- और करीब।
तो वह बहुत डर गयी पर आगे आ गई।
अब वह बिल्कुल मेरे सामने थी।
उसके चुचे मेरे मुँह के सामने थे।
मैं उससे पूछने लगा- कैसे चुकाओगी कर्जा?
वह गरदन नीचे किए खड़ी रही।
मैंने उसका हाथ पकड़ा और उसे अपनी ओर खींचा।
वह कटी हुई डाल की तरह मेरी बांहों में गिरने को हुई तो मैंने उसे अपनी बांहों में भर लिया।
वह डर गयी और मेरे बाजुओं में से छूटने का प्रयास करने लगी।
मैंने एक ही झटके से उसका पल्लू खींच कर साड़ी खोल दी।
अब वह घाघरा चोली में रह गयी।
वह शर्म के मारे एक हाथ से अपने चूचे ढकने लगी और एक हाथ से अपनी ना दिखने वाली चूत ढकने लगी।
मैंने फिर से उसे अपनी ओर खींचा और उसकी चोली खोल दी।
वह अपने दोनों हाथों से अपने चूचों को ढकने का प्रयास करने लगी।
साथ ही विनती करने लगी- मालिक क्या कर रहे हो?
मैंने कहा- बच्चा दे रहा हूँ तुझे, तेरा पति कुछ नहीं कर पाएगा। मैं तुझ पर दया कर रहा हूँ पगली।
ये कह कर मैंने उसे नजदीक खींच कर उसके दोनों हाथ बाजू कर दिया और उसके एक चूचे का निप्पल मुँह में भर लिया।
मैंने उसके दोनों हाथ पीछे ले गया और अपने एक हाथ से उसके दोनों हाथ पीछे पकड़ कर रखे।
अब मेरा दूसरा हाथ खाली हो चुका था, तो मैंने उसके घाघरे की नाड़ा खोल दिया। उसी पल सरसराते हुए उसका घाघरा जमीन पर गिर गया।
अब वह बिल्कुल नंगी हो गई थी और मैं उसका रसपान कर रहा था।
मैं अपने दूसरे हाथ से उसकी चूत को सहलाने लगा।
चूत को स्पर्श करते ही मुझे पता लगा उसकी चूत भी गीली हो गयी थी।
बस थोड़ी सी मेहनत और करनी रह गई थी।
मेरी उंगलियां उसकी चूत में चलने लगीं।
मेरा मुँह चूची को चूसने में मस्त था।
अब वह भी मजा लेने लगी थी।
तभी मैंने उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए और किस करने लगा।
वह भी मस्त हो चली और मेरा साथ देने लगी।
उसकी चूत में चल रही उंगली के कारण वह किसी जल बिन मछली की तरह छटपटाने लगी।
वह कभी पैरों को इधर मोड़ती, कभी पैरों को उधर मोड़ती।
कुछ 15 मिनट तक मैंने उसके साथ ये खेल खेला।
अब मैं उठ खड़ा हुआ और उसे अपने दोनों हाथों में उठा लिया, एक हाथ में पैर थे … दूसरे हाथ में गर्दन।
वह शर्माने लगी और उसने अपना मुँह ढक लिया।
मैंने ले जाकर उसे लिटा दिया मैंने अपने कपड़े उतार दिए और पूरा नंगा हो गया।
एक कमसिन कली जैसी औरत, जो लड़की की तरह ही लग रही थी, और एक पूरा मर्द अपना चौड़ा सीना भरा बदन लेकर उसे रौंद देने की कामुक नजरों से देख रहा था।
मेरे सामने वह एक नादान लौंडिया लग रही थी।
मैंने उसके पैरों को पकड़ा और अपनी ओर खींच कर उसके पैरों को फैला दिया।
मैं नीचे बैठ गया, उसकी चूत थोड़ी फैलायी और उसकी चूत पर अपने होंठ रख दिए।
वह सहम उठी और कसमसाने लगी।
यह हमला उसके लिए नया था।
मैंने जुबान की नोक उसकी चूत में अन्दर तक घुसा दी।
वह छटपटाने लगी, अपना सर यहां वहां मारने लगी।
उसकी चूत बहुत ज्यादा पानी छोड़ने लगी।
मैंने जुबान को नोक से उसकी चूत के दाने को सहलाया, हिलाया और चूसा।
आह की गूंज के साथ उसने अपना आपा खो दिया।
बिस्तर पर बिछी चादर को अपने पंजे में दबोच ली और थरथराती हुई बहने लगी।
मैं भी खड़ा हुआ और उसके चूचों को मसलने लगा, उसके होंठों पर अपने होंठ रख दिए।
तब मैं उसके पैरों को फैला कर मैं बीच में आ गया, अपने औजार को उसकी चूत पर सैट कर दिया।
वह अभी भी झर रही थी।
तभी मैंने उस बहते झरने को रोक लगाते हुए एक जोर का धक्का दे मारा।
मेरा आधा लंड सरसराता हुआ जाकर जमुना की चूत में फंस गया, शायद अटक गया था।
जमुना भी अब दर्द और मजा दोनों के बीच में फंस गयी।
जैसे मेरा लंड उसकी चूत में अन्दर हुआ, वह बोल उठी- आह मालिक, दर्द हो रहा है … आपका बहुत बड़ा है … निकाल लो। मैं मर जाऊंगी।
उसके इतना बोलते ही मैंने एक धक्का और दे मारा।इस बार मेरा पूरा लंड सारी हदें तोड़ता हुआ और सारी नसों को फाड़ता हुआ उसकी बच्चेदानी तक जा पहुंचा।
वह चिल्ला दी- उई मां मर गयी… आह मर गयी… निकाल लो मालिक… मर गयी। मैं… आह मालिक मर जाऊंगी… आपका बहुत बड़ा है मालिक, रहम करो मेरी फट जाएगी। मैं अपने पति को क्या जवाब दूंगी मालिक… उसे पता चल जाएगा मालिक कि मुझे किसी ने चोदा है। मैं कहीं की नहीं रहूँगी।
इधर मेरा काम बन चुका था।
मैंने धक्के देने चालू कर दिए।
कुछ ही देर बाद उसे भी मजा आने लगा।
मैंने अपनी स्पीड बढ़ा दी।
जमुना एक बार झड़ कर दुबारा बहने के लिए फिर से गर्म हो गयी थी।
कुछ ही मिनट की चुदाई में उसने फिर से चादर दबोच ली और आंखें घुमाती हुई वापस और झड़ने लगी।
मैंने अब उसको उठा कर कमर पर ले लिया और खड़े खड़े ही उसे चोदने लगा।
मैं उसकी कमर को अपने दोनों हाथों से पकड़ कर ऊपर उठाता और जोर से लंड पर बिठा देता।
ठप ठप की आवाज गूंजने लगी।
एक कसी हुई नंगी औरत को मैं अपने भीमकाय लंड पर उछाल रहा था; बड़ा आनन्द आ रहा था।
मैंने करीब दस मिनट तक उसे लौड़े पर उछाला, फिर बिस्तर पर पटक दिया।
अब वह बिस्तर पर थी।
मैंने उसे वहीं मुँह के बल के किया और घुटनों के बल झुका दिया।
घुटने मोड़ने से वह चूहे की तरह झुकी हुई थी।
मैंने पीछे से देखा तो उसकी गांड और चूत दोनों के दर्शन हो गए।
मैंने अपना मूसल लंड उसकी चूत पर सैट कर दिया।
उसकी चूत काफी खुल चुकी थी और कचौड़ी सी फ़ूली हुई दिख रही थी।
एक ही धक्के में मैंने अपना लंड अन्दर तक पेल दिया।
वह उठने को हुयी, पर मैंने उसे दबोच लिया था … उठने ही नहीं दिया।
फिर मैं धक्के लगाने लगा।
उससे सहा नहीं जा रहा था।
मेरा लंड उसके पेट में ठोकर मारे जा रहा था।
करीब 15 मिनट की की धुआंधार चुदाई के बाद मैं और वह साथ में बह गए।
कुछ देर मैं उसके ऊपर ही पड़ा रहा था।
फिर उठकर पीछे को बने उसके गुसलखाने में चला गया, उधर बाल्टी में रखे पानी से खुद को साफ करके वापस आ गया।
वह उसी तरह लेटी थी, पेट पकड़ रखा था।
मैंने उसे सहारा देकर उठाया और उसके गुसलखाने के पास उसे छोड़ आया।
करीब 10 मिनट बाद वह बाहर निकली।
शायद उसे चलने में काफी तकलीफ़ हो रही थी।
मैंने उसे पास बिठाया, उसके गाल को चूम कर कहा- तुम कमाल की हो, क्या जिस्म है तेरा, औरत हो, पर लड़की की तरह कसी हुई हो।
वह भी खुश हुई।
मैं फिर उसको किस करने लगा, वह भी साथ देने लगी।
मैंने उसकी चूत को देखा तो पाव रोटी की तरह फूली थी।
मैंने उसे लिटा दिया और उसके दोनों पैरों को ऊपर कर दिया।
मैं नीचे बैठ कर उसकी चूत और गांड के छेद को चाटने लगा।
वह असमंजस में थी कि अभी तो चोदा था, इतनी जल्दी मैं फिर से कैसे तैयार हो गया।
मैंने करीब पांच मिनट तक उसकी चूत को चूसा, फिर उठ खड़ा हुआ और उसके पैरों को उसके सर से मिलाने लगा।
तब जाकर उसकी गांड का छेद मुझे साफ दिखा।
मैंने ढेर सारा थूक अपने लंड पर लगाया। लंड को गांड पर रखा और लंड दबाने लगा।
दो बार लंड सरक कर चूत में घुसा, फिर कोशिश की तो जमुना बोली- मालिक, वहां कहां डाल रहे हैं?
पर मैंने उसकी बात को अनसुनी करके थोड़ा ज्यादा सा थूक उसकी गांड के छेद में डाला और उंगली अन्दर बाहर की।
जमुना उछल पड़ी- अई मर गई!
मैंने लंड को पकड़ कर छेद पर रखा और जोर देकर अन्दर डाल दिया।
अब लंड का टोपा अन्दर घुस चुका था। जमुना रो रही थी, पर वह ऐसी हालत में थी कि हिल भी नहीं पा रही थी।
मैंने फिर से जोर लगाया और धक्का दे मारा।
मेरा पूरा लंड उसकी गांड में चला गया।
उसकी आंखें बड़ी हो गईं… सांसें रुक गयी थीं, आवाज निकलनी बंद हो गयी।
पर मैं नहीं रुका, मैंने धक्का देना चालू कर दिया।
हर धक्के पर वह आह आह किए जा रही थी। उसे बड़ी तकलीफ हो रही थी।
पर मैं भी मजबूर था, उसकी गांड मुझे भा गयी थी।
फिर ठप ठप की आवाज से कोठरी गूंजने लगी।
उसकी गांड ढीली होकर चुदने लगी थी।
करीब 15 मिनट की गांड चुदाई के बाद मेरी पिचकारी छूट गई और उसकी गांड में सारा सैलाब भरने लगा।
कुछ देर मैं वैसे ही पड़ा रहा।
अपने आप ही मेरा लंड सिकुड़ कर बाहर आ गया।
इस तरह से मैंने देसी गाँव की चूत चोदी।
उसके बाद मैं उठा कर गया और साफ सफाई करके वापस लौटा।
मैंने फिर से उसे अपने हाथों में उठाया और ले गया।
उससे खड़ा नहीं हुआ जा रहा था।
मैंने उसे खुद साफ किया और बाहर ले आया।
मन तो उधर ही एक बार उसकी बुर फिर से चोदने का हुआ, पर उसकी हालत देख कर मैंने इरादा बदल दिया।
तब मैंने उसे बेड पर बिठाया।
बाहर आकर मैंने चम्पा को आवाज लगायी।
वह मेरी आवाज के ही इंतजार में थी, सो दौड़ कर आयी।
मैंने उसे मसाला दूध लाने को कहा।
वह गयी और मसाला दूध ले आई।
मैंने उसे अन्दर आने का इशारा किया।
उसे लगा आज वह भी चुदने वाली है।
पर अन्दर आते ही वह सारा मामला समझ गयी।
जमुना चम्पा दोनों एक ही बस्ती में रहती थीं और एक दूसरे को पहचानती थीं।
चम्पा अन्दर आयी।
तब तक जमुना ने कपड़े पहन लिए थे। अन्दर आकर मैं कुर्सी पर बैठ गया।
वह आते ही बोली- अरे जमुना भाभी आप यहां?
उसने मेरी तरफ देखा।
मैंने अपने मूछों पर ताव दिया।
वह समझ गयी।
जमुना लज्जित हो रही थी पर मैंने मामला संभाल लिया।
मैं बोला- ये दूध जमुना को दे दो, उसे तकलीफ हो रही है। जैसे तुम्हें हो गयी थी।
अब सारी बात जमुना को समझ में आ गयी।
वह थोड़ी सहज हुई।
दोनों एक दूसरे के गले मिलीं।
फिर उसने दूध पिया, उसे थोड़ा सुकून मिला।
फिर मैंने चम्पा को जाने को कहा।
मैं जमुना से बोला- तेरा सारा कर्जा मैंने माफ किया, पर अगर तू पेट से हुई तो साहूकार का भी कर्जा मैं माफ करवा दूंगा, पर ये खबर तुझे मुझे देनी होगी कि मालिक मैं आपके बच्चे की मां बनने वाली हूँ।
जमुना खुश हो गई और लंगड़ाती हुई जाने लगी।
पर जाते जाते मेरे पैर पड़ने लगी और बोली- मालिक, आपने मुझे अनोखा सुख दिया है। आप जब भी बुलाएंगे, मैं आ जाऊंगी।
मैं बोला- ठीक है, बुला लूँगा। अब तुम जाओ।
वह लंगड़ाती हुई चली गयी।