दोस्तो, मैं आयुषी दिल्ली से हूँ, आपके सामने चुदाई भरी कहानी लेकर हाज़िर हूँ। यह कहानी उस समय की हैं जब में कॉलेज के फर्स्ट ईयर में पढ़ रही थी, मेरी हाइट 5 फीट 5 इंच थी और मेरा छरहरा बदन देखकर हर किसी का मन मचल जाता था।
कॉलेज में लड़के मुझे खूब लाइन मारा करते थे। लड़कों को मेरी मस्त बड़ी सी गांड बहुत अच्छी लगती थी जब मैं मटक कर चलती थी। मेरी चूत की खुजली मिटाने के लिए मैं दो से तीन उंगलियां चूत में डालकर चूत की गर्मी को शांत कर लेती थी।
इसलिए मैं ज्यादातर चूत की गर्मी को अपनी उँगलियों से ही शांत करने लगी। रात को सोते समय मोबाइल पर ब्लू फिल्म देखते हुए चूत को सहला कर और कभी चुपके से बैगन या मूली से भी अपनी चूत की खुजली मिटने लगी थी मैं। मैं अक्सर ऐसे ही काम चलाती थी।
मगर अब मेरी चूत की गर्मी अब उंगली या बैगन से शांत नहीं हो रही थी ऐसा मुझे लगने लगा था। मुझे लंड की सख्त जरूरत महसूस हो रही थी।
मैं इतनी उदास हो चली थी की मुझे लगा कि अब मेरी चूत को शादी के बाद ही लंड का स्वाद चखने को मिलेगा।
नवंबर के महीने में जब हल्की-हल्की ठंड शुरू हो चुकी थी तो मैं गर्म-गर्म लंड की जगह वही मूली बैंगन से काम चलाकर चूत की खुजली मिटा रही थी।
मगर कुछ दिनों बाद ऐसा हुआ की मेरी और मेरी चूत की ख़ुशी का तो ठिकाना ही नहीं रहा। जिसकी मैं कभी कल्पना भी नहीं कर सकती थी।
एक दिन मैं कॉलेज के लिए तैयार हो रही थी अपने रूम से तैयार होकर मैं नीचे आयी तो मैंने देखा पापा भी ऑफिस जाने के लिए तैयार हो चुके थे और नाश्ता कर रहे थे।
मम्मी ने मुझे कहा आजा बेटा तू भी नाश्ता कर ले और हाँ कहते हुए मैं भी नाश्ता करने लगी तभी पापा ने कहा बेटा आज तेरी बुआ आने वाली हैं शाम को तो ऑफिस से जल्दी स्टेशन से बुआ को लेकर आऊंगा बुआ दो तीन दिन यही रहने वाली हैं।
यह सुनकर मुझे बहुत ख़ुशी हुई की चलो बुआ के साथ कुछ दिन बाते हो जाएँगी बुआ जब भी हमारे घर आती हैं तो मैं उनसे खूब बाते करती हूँ।
बुआ 32 साल की थीं। 2 साल पहले ही उनकी शादी हुई थी।
फूफा जी का बिजनेस था तो 2-3 महीने में एक बार वो बिजनेस के चक्कर में 3-4 दिनों के लिए बाहर जाते थे।
उनके घर में और कोई नहीं था तो बुआ उतने दिन हमारे यहां चली आती थीं।
बुआ का नाम शालिनी है और हम लोग प्यार से उन्हें शालू बुआ कहते थे।
वे थी तो भले 32 साल की मगर लगती नहीं थीं।
5 फीट 4 इंच की ऊंचाई और हल्का सा भरा हुआ बदन और बड़ी सी चूचियों में बेहद सेक्सी लगती थीं।
शाम को ऑफिस से आते समय पापा बुआ को लेकर आए।
मम्मी मुझसे बोली- आयुषी, बुआ का बैग ऊपर वाले कमरे में रख दे।
मैंने कहा- ठीक है।
और बुआ का बैग ले जाकर ऊपर वाले कमरे में रख दिया।
हमारे घर में नीचे एक बेडरूम, हॉल, किचन था बाकी दो कमरे ऊपर बने थे।
जिनमें एक कमरा मेरा था और दूसरा सोनू का।
बुआ जब भी आती थी तो मेरे कमरे में रुकती थी।
मगर अब सोनू था नहीं तो मैंने बुआ का बैग सोनू के कमरे में रख दिया।
बुआ से बात करते-करते और उनकी बेटी से खेलते हुए कब टाइम बीत गया पता ही नहीं चला और रात के खाने का टाइम हो गया।
खाना खाने के बाद थोड़ी देर तक माँ और बुआ नीचे ही गप्पे मारने लगे।
बुआ का कॉफी पीने का मन किया हम दोनों ने कॉफी बना कर पी।
बातें करते-करते रात 11:30 बज गए… मम्मी भी सोने चली गई।
बुआ बोली- चलो अब सोने का टाइम हो गया है।
हम दोनों ऊपर आ गई, बुआ अपने कमरे में सोने चली गई।
रोज़ की तरह मैने लॉबी की लाइट ऑफ कर नाइट बल्ब जला दिया और अपने कमरे में चली आई; दरवाजा बंद किया और लाइट ऑफ कर बिस्तर पर लेट गई।
थोड़ी देर सोने की कोशिश की तो मुझे नींद नहीं आयी।
कॉफी पीने की वजह से मेरी नींद जा चुकी थी।
फिर मैं मोबाइल पर पोर्न मूवी देखने लगी।
मूवी फैमिली सेक्स की थी जिसमें बाप-बेटी की बीच चुदाई चल रही थी।
मूवी देखते-देखते मैं एक हाथ अपनी पैंटी में डाल कर अपनी चूत सहला रही थी।
नींद नहीं आने की वजह से मैं काफी देर तक मूवी देखती रही।
मैंने मोबाइल में टाइम देखा तो रात के 1 बज चुके थे।
अचानक मुझे बाहर कुछ आहट महसूस हुई।
मैं मोबाइल बंद कर चुपचाप लेटी रही।
रात में मैं अक्सर मोबाइल पर पोर्न मूवी देखती थी इसलिए मैं अपने कमरे में नाईट बल्ब भी नहीं जलाती थी ताकि अंधेरा रहे।
आवाज़ सीढ़ियों से आ रही थी जैसे कोई धीमे-धीमे ऊपर आ रहा हो।
मैं अपने दरवाजे की और देख रही थी।
लॉबी की रोशनी हल्का-हल्का दरवाजे के नीचे से मेरे कमरे में आ रही थी।
तभी मुझे लगा कि कोई मेरे दरवाजे के सामने आकर खड़ा हुआ है।
मैं बिना आवाज किए चुपचाप लेटी रही।
पहले मुझे लगा, हो सकता है कि मम्मी किसी काम से ऊपर आयी होंगी।
मगर रात के करीब 1 बज रहे थे तो इतनी रात में मम्मी क्या करने ऊपर आएंगी।
करीब 10-15 सेकेंड के बाद धीरे से मेरा दरवाजा खुला।
मैंने दरवाजा लॉक नहीं किया था इसलिए दरवाजा खुल गया।
रात में मम्मी-पापा कभी ऊपर नहीं आते थे इसलिए मैं डोर लॉक नहीं करती थी, हालांकि फिर भी मैं सतर्क रहती थी।
लॉबी के नाइट बल्ब की रोशनी में मैंने देखा कि वे पापा थे।
मेरी तो धड़कन बढ़ गई कि पापा इस तरह चोरी से मेरे कमरे में क्यों देख रहे हैं।
मैं चुपचाप बिना हरकत किए लेटी रही।
मेरे कमरे में बिल्कुल अंधेरा था इसलिए उन्हें कुछ दिखाई नहीं दे रहा था।
मगर वो थोड़ी देर वही दरवाजे के बाहर ही खड़े रहे, ऐसा लग रहा था कि वो कन्फर्म करना चाह रहे थे कि मैं जगी हूं या सो रही हूं।
करीब 10-15 सेकंड रुकने के बाद पापा ने वापस मेरा दरवाजा धीरे से बंद कर दिया।
अभी मैंने कुछ सोचा, तभी मुझे लगा कि पापा ने बुआ के कमरे का दरवाजा भी खोला है।
मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि आखिर पापा क्या कर रहे हैं।
मुझे बुआ के कमरे का दरवाजा धीरे-धीरे खुलने की आवाज आई और फिर दोबारा दरवाजा बंद भी हुआ।
मगर पापा के लौटने की आवाज नहीं आई।
मैं समझ गई कि पापा बुआ के कमरे में अंदर चले गए हैं।
मेरी धड़कन तेज होती जा रही थी कि आखिर इतनी रात में पापा बुआ के कमरे में क्या करने गए हैं।
मेरी बेचैनी बढ़ती जा रही थी।
मैं जानना चाह रही थी कि आखिर पापा अंदर क्यों गए हैं।
अचानक मेरे दिमाग में एक आइडिया आया।
दरअसल पीछे की तरफ दोनों कमरे की एक कॉमन बालकनी थी।
दोनों कमरे की खिड़की और दरवाजे बालकनी में खुलते थे।
मैंने हिम्मत कर के धीरे से बिना आवाज किए बालकनी का दरवाजा खोला और बगल के कमरे की तरफ देखा तो दरवाजा बंद था।
बुआ के कमरे दरवाजा ठीक मेरे कमरे के दरवाजे के बगल में था और दरवाजे के दूसरी ओर आगे खिड़की थी जो खुली थी।
खिड़की से नाइट बल्ब की हल्की रोशनी बाहर आ रही थी। खिड़की के बाद दीवार थी खिड़की और दीवार के बगल में कोने में करीब-करीब अंधेरा था।
मैं वहां जाकर आराम से अंदर देख सकती थी।
चूंकि मैं नंगे पैर थी इसलिए जरा भी आवाज नहीं हो रही थी।
मैं नीचे बैठ गई ताकि बालकनी से बाहर न दिखाई दूं।
फिर धीरे-धीरे घुटनों और हाथों के बाल चल कर बुआ के कमरे की खिड़की के पास जाकर नीचे घुटनों के बल बैठ गई।
अब यहां कोई मुझे नहीं देख सकता था।
खिड़की परदे लगे थे मगर उनका इतना गैप था कि अंदर आराम से कोई देख सकता था।
मैंने हल्का सा सिर उठा कर कमरे में झांका तो देखा कि बुआ बिस्तर पर पीठ के बल सो रही थीं।
उन्होंने आगे से पूरी खुलने वाली नाइट गाउन पहनना हुआ था जो पेट पर रिबन से बांधा हुआ था।
पापा उनके बगल में आकर खड़े थे।
वे बनियान और हाफ पैंट में थे।
अचानक बुआ के सिर के पास पापा नीचे घुटनों के बल बैठ गए और दोनों हाथ बढ़ाकर बुआ की चूचियों पर से गाउन हटा दिया।
यह देखते ही मेरा तो कलेजा मुंह को आ गया।
गाउन आगे से पूरी खुली थी तो उन्हें कोई दिक्कत नहीं हुई।
बुआ ने अंदर ब्रा नहीं पहनी थी, जिससे गाउन हटते ही बुआ की दोनों चूचियां नंगी हो गईं।
पापा ने हल्का हाथ दोनों चूचियां पर फेरा और फिर झुक कर एक चूची मुंह में लेकर चूसने लगे और दूसरी चूची को हाथ से हल्का-हल्का मसलने लगे।
मुझे काटो तो खून नहीं… मैं आंख फाड़े यह नजारा देख रही थी।
पापा अपनी सगी छोटी बहन की चूची चूस रहे थे।
मुझे लगा कि अगर बुआ जग गयी तो क्या होगा?
कहीं गुस्से में चिल्लाने न लगें और नीचे मम्मी जग जाएं।
डर और उत्तेजना एक्साइटमेंट में दिल जोर-जोर से धड़क रहा था।
थोड़ी देर चूची चूसने के बाद पापा दोबारा खड़े हो गए।
अचानक पापा ने अपना हाफ पैंट नीचे कर दिया।
पैंट के नीचे होते ही उनका लंड साफ दिखाई देने लगा।
उनके लण्ड में तनाव साफ दिख रहा था।
पापा ने अपने लंड को हाथ से पकड़ा और उसकी चमड़ी को पीछे खींच और सुपारे को बुआ की चूची से रगड़ने लगे।
पापा का लंड देखते ही मेरा दिल तेजी से धड़कने लगा था।
मैं एकटक तक उनके मोटे और लंबे लंड को देखे जा रही थी।
निप्पल से लंड रगड़ते हुए पापा हल्का सा झुके और बुआ का नाइट गाउन का रिबन खोल कर गाउन को अगल-बगल हटा कर उन्हें आगे से पूरी नंगी कर दिया।
नाइट बल्ब की रोशनी में बुआ का गोरा-गोरा मांसल बदन चमकने लगा।
बुआ ने पैंटी भी नहीं पहनी थी जिसे उनकी फूली हुई चूत साफ दिखाई दे रही थी।
ऐसा लग रहा था कि बुआ ने अपनी झांटों को शेव किया था।
बुआ का गाउन खोलने के बाद पापा अपने लंड को चूची से रगड़ते हुए झुके और एक हाथ से बुआ की चूत को सहलाने लगे।
अन्तर्वासना से मेरा चेहरा गर्म हो गया था मगर वही मुझे डर भी लग रहा था कि अगर बुआ की नींद खुल गई तो क्या होगा।
लेकिन एक बात मैंने महसूस किया कि पापा बिल्कुल भी डर नहीं रहे थे।
ऐसा लग रहा था कि उन्हें इस बात की परवाह ही नहीं थी कि बुआ की नींद खुल जाएगी तो क्या होगा।
दूसरी तरफ बुआ के साथ इतना कुछ हो रहा था और उनकी नींद नहीं खुल रही थी।
तब मैंने सोचा कि कहीं ऐसा तो नहीं कि बुआ सोने का नाटक कर रही हो और आराम से मजे ले रही हों।
मेरे दिमाग में अभी ये सब चल ही रहा था कि मैंने देखा कि पापा अब बुआ की चूची को लंड से रगड़ना छोड़ कर बेड के उस साइड में चले गए जिधर बुआ पैर करके सोई थीं।
पापा ने बुआ के दोनों पैरों को पकड़ कर हल्का सा फैला दिया और फिर आगे झुक कर दोनों पैरों के बीच में अपनी कोहनी टिका दी।
उनका मुंह एकदम बुआ की चूत के ऊपर आ गया था।
मैं समझ गई कि वो बुआ की चूत चाटने जा रहे हैं।
नवंबर की हल्की ठंड में, मैं रात के 2 बजे खुली बॉलकोनी में, मैं बाहर बैठी थी।
मगर ठंड लगना तो दूर ये सब देखकर मेरा बदन एक दम गर्म हो गया था।
पापा, बुआ की चूत के दोनों फांकों को फैला कर और जीभ से बुआ की चूत को चाटने लगे।
जैसे ही पापा ने बुआ की चूत को चाटना शुरू किया था वैसे ही बुआ के बदन में हल्की सी कम्पन हुई।
पापा करीब-करीब बेड पर पेट के बल लेट गए थे और उन्होंने बुआ की दोनों जांघों को उठा कर अपने कंधों के अगल-बगल रखा था और बड़े आराम से बुआ की चूत को चाट रहे थे।
अचानक मैंने देखा कि बुआ ने अपना एक हाथ पापा के सिर पर रख दिया और हल्का-हल्का अपने कमर को हिला कर चूत चटवाने लगीं।
यह देखकर मैं तो सन्न रह गई, इसका मतलब बुआ और पापा के बीच ये खेल पहले से चल रहा था और इसलिए बुआ ने जानबूझ कर ब्रा और पैंटी नहीं पहनी थी।
मेरी तो हालात खराब होने लगी… मेरी चूत एकदम गीली हो गई थी।
सोने से पहले पैंटी और ब्रा उतार देती थी तो मैं सिर्फ स्कर्ट पहनना हुआ था और ऊपर टी-शर्ट।
पापा और बुआ की चुदाई का खेल देखकर मैं इतनी चुदासी हो गई थी कि अब मुझसे स्कर्ट भी बर्दाश्त नहीं हो रही थी।
मैंने वहीं बैठे-बैठे अपनी स्कर्ट भी उतार दिया और घुटनों की बल बैठ कर खिड़की से अंदर देखने लगी।
अब मेरे शरीर पर सिर्फ एक टी-शर्ट थी।
अपनी चूत को धीरे-धीरे सहलाते हुए मैं पापा और बुआ की चुदाई का खेल देखने लगी।
करीब 5 मिनट तक बुआ की चूत चाटने के बाद पापा थोड़ा सा उठे और खिसक कर ऊपर आ गए और बुआ की दोनों जांघों के बीच में बैठ गए।
फिर उन्हें दोनों हाथों से पैरों को ऊपर उठाया और अपने कंधे पर रख लिया।
अब उनका लंड एकदम बुआ की चूत के सामने था।
पापा ने एक हाथ से अपने लंड को पकड़ा और बुआ की चूत पर रख कर हल्का-हल्का रगड़ने लगे।
फिर एक धक्के में पूरा लंड को बुआ की चूत में डाल दिया।
भाई बहन चोद का लंड के चूत में जाते ही बुआ के मुंह से हल्की सी सिसकारी निकली।
फिर पापा ने अपनी कमर को हिला कर बुआ को चोदना शुरू कर दिया।
इधर मेरी हालत ऐसी हो रही थी कि जैसे पूरे शरीर का खून मेरी चूत के पास आ गया हो।
उधर पापा तेजी से बुआ को चोदने लगे, इधर मैं भी उतनी ही तेजी से अपनी चूत को सहला रही थी।
थोड़ी ही देर में कमर को तेज झटका देते हुए मेरी चूत पानी ने छोड़ दिया।
मैं बुरी तरह हांफ रही थी।
मैंने अंदर नजर डाली तो देखा कि पापा बुआ के ऊपर लुढ़के पड़े थे और वे भी तेजी से हांफ रहे थे।
मैं समझ गई कि पापा झड़ चुके हैं।
अब आगे देखने की मेरी हिम्मत नहीं थी, मेरी जांघें कांप रही थी।
मैं उसी तरह वापस घुटनों के बल चल अपने कमरे में आ गई और दरवाजा बंद कर बिस्तर पर आकर लेट गई। कब मुझे नींद आ गई पता ही नहीं चला।
ये खेल जो इन दोनों के बिच चल रहा था वो मेरे लिए तो आश्चर्य से भरा हुआ था, दोस्तों आपकी क्या राये है मुझे कमेंट बॉक्स में जरूर बताये।