नमस्कार पाठको.. मेरा नाम दीपक है, मैं पच्चीस साल का साधारण सा दिखने वाला लड़का हूँ मैं अपनी आपबीती आपके साथ शेयर करना चाहूँगा..
मैं हरियाणा का रहने वाला हूँ.. हरियाणा का नाम सुनते ही मेरे मन में वहाँ के जाट मर्दों के ख्याल घूमने लगते हैं और मुंह में पानी आ जाता है और ऐसी तड़प उठती है कि बस कोई मिल जाए जिसके लंड से निकले सफेद दूध को पीकर मैं अपनी प्यास बुझा सकूं..
फिर भी अपने मुंह की प्यास बुझाने के लिए मैं हर जोखिम उठाने को तैयार हो जाता हूँ.. ऐसी ही एक कोशिश मैंने कुछ दिन पहले की जिसके बारे में आपको विस्तार से बताने जा रहा हूँ..
एक रात की बात है जब मैं दिल्ली के कश्मीरी गेट बस अड्डे से रोहतक की बस में चढा़.. बस में गिनी चुनी सवारियाँ थी जो पहले से अपनी सीट पर बैठ चुकी थीं.. मेरी नज़रें अपने मर्द को ढूंढने में लग गई.. इसलिए मैं बस के अगले दरवाजे से चढ़ा कि देख सकूँ बस में क्या क्या माल बैठा है..
और कुछ ही सेकेंड्स में मुझे एक 25-26 साल का देसी लड़का बस की बीच वाली सीट पर अकेला बैठा दिखा.. मैं भी मौका ना गंवाते हुए फटाफट उसके पास जाकर बैठ गया..
लेकिन जैसे ही मैंने उसकी पैंट की तरफ देखा मेरी तो सांसें रुक गईं..उसने खाकी रंग की पैंट पहन रखी थी जिसके नीचे काले जूते थे..मैंने खुद से कहा कि आज तो पुलिस वाले के पास फंस गया बेटा..
फिर भी उसकी मोटी मोटी फैली हुई मर्दाना जांघें और जांघों के बीच में उसकी जिप पर बने उभार को देखकर मुझसे रहा नहीं गया और मैं हिम्मत करके उसके पास बैठ गया।
उसने एक बार मेरी तरफ देखा और वापस सामने देखने लगा.. उसके लाल होंठ.. पर हल्की हल्की दो दिन पहले शेव की हुई मूछें और हल्की दाढ़ी ने मुझे उसको घूरते रहने पर मजबूर कर दिया..
उसने फिर मेरी तरफ देखा और मैंने घबराकर मुंह फेर लिया.. फिर नीची नजर से मैंने उसकी खाकी पैंट की उठी हुई जिप की तरफ देखा तो उसका सोया हुआ लंड एक तरफ साइड में नजर आ रहा था जिसे देखकर मेरे मुंह में पानी आने लगा.. मन कर रहा था उस पर हाथ रख दूं..
लेकिन डर के मारे कुछ कर नहीं पा रहा था।
फिर मुझे एक आइडिया आया… मैंने अपने बैग से पैन निकाला और जान बूझकर उसे उसके पैरों की तरफ गिरा दिया.. नीचे झुकने के बहाने से मैंने उसकी जांघ पर हाथ रखा और दबाते हुए पैन उठा लिया.. ऐसा करते हुए मेरी बड़ी उंगली उसके सोये हुए लंड के पास पहुंच पहुंचते रह गई।
मैं फिर से आराम से बैठ गया.. अब बस में एक दो सवारी ही बची थी.. मैं भी ज्यादा देर भावनाओं को संभाल नहीं पाया तो फिर से पैन गिरा दिया और अबकी बार पैंट में सोये हुए उसके लंड की टोपी पर अपनी छोटी उंगली रख कर दबाते हुए पैन उठा लिया।
उसके जवान लंड को छूकर जैसे मेरे अंदर आग सी जग गई.. मन कर रहा था वहीं होंठ रख दूँ लेकिन डर भी लग रहा था.. और इस बार उसके चेहरे पर भी गुस्सा था..
तो मैं फिर से बैठ गया..लेकिन इस बार उसका सोया हुआ लंड थोड़ा बढ़ गया.. मैं मन ही मन खुश हुआ कि मकसद कामयाब होता दिख रहा है.. इस बार मैं एक कदम और आगे बढ़ा मैंने एक पांच रुपये का सिक्का उसकी जिप पर बने उभार के नीचे उसकी जांघों के बीच में गिरा दिया जहाँ उसके आंड थे और जैसे ही मैं उसको उठाने उसकी जिप की तरफ बढ़ा उसने मेरा सिर पकड़ कर अपने जांघों के बीच में घुसा दिया- ले साले गंडवे.. चूस इसे..
यह कहते हुए उसने दोनों हाथों से मेरे बाल पकड़कर मेरे होंठ अपने सोये हुये लोड़े पर टिका दिए..
मैं डरा हुआ था फिर भी उसके लोड़े को छूकर मुझे सेक्स चढ़ गया.. उसके लंड में भी तनाव आने लगा था और मैं पैंट के ऊपर से ही उसके मस्त लंड को चूमे जा रहा था।
उसका लंड उफान पर आ गया और झटके मारने लगा था.. हाय क्या लोड़ा था उसका एकदम गोल मोटा 7 इंच का लंड.. जो उसकी पैंट को फाड़ने को हो रहा था..
वो दोनों हाथों से मेरा मुंह लौड़े पर घुसाए जा रहा था और मैं पैंट के ऊपर से ही उसको चूस रहा था और उसकी जिप से वीर्य की हल्की हल्की खुशबू भी आने लगी थी जो उसकी मर्दानगी का अहसास करा रही थी और मुझे मदहोश कर रही थी।
अब मैं झटके मारते लंड को चूसने के लिए मरा जा रहा था…
उसने बाल पकड़ कर मेरा सिर उठाया तो मेरे थूक से उसकी पैंट पर लंड का आकार बन गया था और उसका तंबू मेरे थूक में सन गया था..
उसने मुझे एक तरफ फेंका और जाकर आगे बैठे कंडटक्टर के कान में कुछ फुसफुसाया..
कंडटक्टर मेरी तरफ देख कर मुस्कुराया और वो पुलिस वाला अपने लंड को पैंट में से ही सहलाते हुए मेरे पास आ गया.. पास आते ही बस की लाइट बंद हो गई और मैं समझ गया कि मेरी क्या हालत होने वाली है।
उसने मुझे उठाया और मेरी लोअर को नीचे खींच के मुझे सीट पर उल्टा गिरा दिया.. उसने अपनी पेंट खोली.. और अंडरवियर उतारा और अपना फनफनाता लंड मेरी गांड के छेद पर टिका दिया और बोला- ले साले गंडवे.. कहते हुए उसने अपना गर्म गर्म लौड़ा मेरी गांड में घुसेड़ दिया..
मेरी आह निकल गई और मैं छटपटाया.. लेकिन अपनी मजबूत बाजुओं से उसने मेरे कूल्हे पकड़े हुए थे और मैं हिल भी नहीं पा रहा था..
उसने अपना लंड बाहर निकाला और फिर से पूरा अंदर घुसेड़ दिया- ..ले साले… यही चाहिए था ना तुझे..
कहते हुए उसने धक्के मारने शुरू किए और वो मर्द मेरी गांड को गचागच चोदने लगा..
मुझे बहुत दर्द हो रहा था लेकिन मजबूत शरीर की पकड़ के साथ उसका लोहे जैसा गर्म लंड लेते हुए सारा दर्द भूल जा रहा था मैं और मन कर रहा था उस मर्द के अंश को अपने अंदर समा लूं…
बस के धक्कों के साथ उसका धक्का लगता तो उसका लोड़ा आंड तक मेरी गांड में चला जाता.. बस चलती रही.. और वो चोदता रहा..
दस मिनट के बाद उसकी स्पीड और तेज हो गई और उसका लंड पत्थर की तरह कड़ा हो गया और झटके मारते हुए उसने अपना अंश मेरी सूज चुकी गांड में छोड़ दिया जिससे मुझे दर्द में राहत मिली.. और अंदर से एक अजीब सी संतुष्टि भी मिली।
पैंट पहनने के 2 मिनट बाद ही उसका स्टैंड आ गया और वो मर्द उस रात की याद हमेशा के लिए मेरे पास छोड़कर चला गया।